सिंगापुर में भारतीयों की पहचान: राष्ट्रीयता, नस्ल और भाषा का अनूठा संगम, जानें क्या कहते हैं लोग
सिंगापुर। सिंगापुर में रहने वाले भारतीय अपनी पहचान को राष्ट्रीयता, नस्ल और भाषा के आधार पर सबसे अधिक महत्व देते हैं। यह निष्कर्ष नीति अध्ययन संस्थान द्वारा हाल ही में किए गए एक शोध से सामने आया है। 2024 में आयोजित ‘नस्ल, धर्म और भाषा’ पर आधारित सर्वेक्षण में 4,000 सिंगापुरवासियों की राय शामिल की गई। इस अध्ययन से पता चला कि सिंगापुर के निवासियों की आत्म-पहचान कई कारकों पर आधारित है, जिसमें राष्ट्रीयता, भाषा और धर्म सबसे अहम हैं।
शोध के अनुसार, भारतीय मूल के सिंगापुरवासियों में राष्ट्रीयता को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। सर्वे में 50.1% भारतीयों ने ‘सिंगापुरी होने’ को अपनी पहचान का मुख्य आधार बताया, जो चीनी (37.8%) और अन्य समूहों (38.2%) की तुलना में काफी अधिक है। सिंगापुर की कुल जनसंख्या में चीनी मूल के लोग करीब 75%, मलय 15% और भारतीय 7% से अधिक हैं।
जब लोगों से उनकी सबसे महत्वपूर्ण पहचान चुनने को कहा गया, तो 30.3% भारतीयों ने राष्ट्रीयता को प्राथमिकता दी, जबकि 19.9% ने नस्ल को महत्वपूर्ण माना। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारतीय और मलय समुदायों के लिए राष्ट्रीयता इसलिए अधिक मायने रखती है, क्योंकि यह उन्हें सिंगापुर के बहुसांस्कृतिक समाज में एकजुटता का अहसास कराती है।
इसके अलावा, केवल 19.1% चीनी मूल के लोगों ने नस्ल को ‘बेहद महत्वपूर्ण’ माना, जबकि भारतीयों में यह आंकड़ा 30.4% और मलय में 37.6% था। भाषा के मामले में, 36.3% भारतीयों ने अपनी मातृभाषा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया, जो सभी समूहों में सबसे अधिक है।
अध्ययन में यह भी उजागर हुआ कि लगभग 80% सिंगापुरवासी अपनी पहचान को किसी न किसी धर्म से जोड़ते हैं। हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्मों को मानने वाले भारतीयों के लिए राष्ट्रीयता और भाषा उनकी पहचान के प्रमुख आधार बने हुए हैं। यह शोध सिंगापुर की बहुसांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करता है तथा समावेशी नीतियों की आवश्यकता पर जोर देता है।
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