हाईकोर्ट : विवाहित होने के बावजूद विकलांग पुत्र पारिवारिक पेंशन का हकदार
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेलवे विभाग के एक मृतक कर्मचारी के नेत्रहीन पुत्र के पारिवारिक पेंशन दावे पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि मात्र विवाहित होने के आधार पर 100% विकलांग पुत्र को पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के आदेश को निरस्त करते हुए विभाग को मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने माना कि केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 54(6) के स्पष्टीकरण 1 और रेलवे सेवक (पेंशन) नियम, 1993 के नियम 75(6) में स्पष्ट प्रावधान है कि विकलांग पुत्र या पुत्री, चाहे वे विवाहित हों, जीवन भर के लिए पारिवारिक पेंशन के हकदार हैं, बशर्ते वे आजीविका मानदंडों को पूरा करते हों और यदि परिवार के किसी अन्य सदस्य का पूर्व दावा न हो। उक्त आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने इफ्तिखार अली की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया।
मामले के अनुसार याची के पिता वर्ष 2002 में सेवानिवृत्त हुए थे और वर्ष 2015 में उनका निधन हो गया। याची, जो जन्म से नेत्रहीन है और जिसके पास मुख्य चिकित्सा अधिकारी का प्रमाणपत्र भी है, ने पारिवारिक पेंशन का दावा किया था, लेकिन रेलवे विभाग ने 15 जनवरी, 2010 के परिपत्र का हवाला देकर उसका दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि विवाहित पुत्र पेंशन का हकदार नहीं है। कैट ने भी विभाग के फैसले का समर्थन किया। मामले पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि विभाग और ट्रिब्यूनल ने रेलवे बोर्ड के 24 फरवरी 2016 तथा 8 जुलाई 2022 के पत्र को नजरअंदाज कर दिया, जिनमें स्पष्ट किया गया है कि विवाहित विकलांग पुत्र/पुत्री भी पारिवारिक पेंशन के लिए पात्र हैं। अंत में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याची की वैवाहिक स्थिति अपने आप में पेंशन से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती, इसलिए विभाग को अन्य कानूनी आवश्यकताओं की जांच कर याची के दावे पर पुनर्विचार करना चाहिए।
