बोध कथा : महिमा राधा नाम की 

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Published By Anjali Singh
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एक कुष्ठ रोगी अपने कुष्ठ रोग के कारण अत्यधिक परेशान रहता था।  किसी ने उसे ब्रज भूमि जाने की सलाह दी, इस पर वह वृंदावन आ गया। यहां वह सड़क के किनारे बैठा रहता था, और हर आने जाने वाले व्यक्ति से अपना कुष्ठ रोग ठीक होने का उपचार पूछता रहता था। उसकी हालत देखने के बाद कोई कुछ दवाई बता कर चला जाता तो कोई कुछ उपचार बता देता। लेकिन धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था, और किसी के भी उपाय या उपचार से न तो उसका कुष्ठ रोग कम हुआ, न ही उसकी पीड़ा कम हुई। 

कुछ दिनों के पश्चात एक सरल हृदय बाबा उस मार्ग से गुजरे। कुष्ठ रोगी ने उनसे भी अपने इलाज की गुहार लगाई। बाबा उसकी दशा देखकर द्रवित हो गए। हाल-चाल पूछा और कहा कि तुम सारा दिन यहां बैठे-बैठे आने-जाने वाले लोगों से उपचार पूछते रहते हो। वृंदावन में आकर भी राधा रानी का नाम नहीं लेते हो। कल से अपने मुख से हर समय 'श्री राधे-श्री राधे' का उच्चारण किया करो। वही तुम्हारा कल्याण करेंगी। कुष्ठ रोगी ने बाबा की सलाह मानकर उसी समय से 'श्री राधे-श्री राधे' जपना शुरू कर दिया। 

अब वह आने-जाने वाले लोगों से भी श्री राधे-श्री राधे कहने लगा। यहां तक कि उसके घावों में जब बहुत पीड़ा होती थी, तब भी वह कराहने के बजाय करुण स्वर में 'श्री राधे-श्री राधे' ही कहता रहता। श्रीकृष्ण ने बृज की गलियों से गुजरते हुए कुष्ठ रोगी की करुण वेदनामयी आवाज में 'श्री राधे-श्री राधे' की पुकार सुनी, तो तुरंत दौड़े-दौड़े उसके पास पहुंचे। कुष्ठ रोगी के पास आकर श्रीकृष्ण को ऐसा प्रतीत हुआ मानो वहां कोई कुष्ठ रोगी न होकर साक्षात राधा रानी बैठी हैं। 

श्रीकृष्ण  ने तुरन्त उस कुष्ठ रोगी को गले से लगा लिया और स्वयं भी भावविह्वल होकर राधे-राधे कहने लगे। तभी पीछे से राधा रानी बोलीं-'प्रभु मैं तो इधर खड़ी हूं उधर नहीं।' किन्तु भगवान को तो कुष्ठ रोगी में ही राधारानी दिख रहीं थीं। उन्होंने उसे ही मजबूती से पकड़े रखा और राधे-राधे कहते रहे। कुछ क्षणों के पश्चात जब श्रीकृष्ण ने आंखें खोली तो देखा कि राधा रानी तो वास्तव में उनके पीछे ही खड़ी थीं।

किन्तु इतने ही क्षणों में भगवान की कृपा और स्पर्श मिलने से वह कुष्ठ रोगी पूरी तरह भला-चंगा और पूर्णत: स्वस्थ हो चुका था। यह कथा हमें सीख देती है कि जब पूर्ण श्रद्धा से कोई कार्य करते हैं तो सफलता जरूर मिलती है, भले ही वह किसी भी भगवान का नाम जप ही क्यों न हो। जब हम अपने इष्टदेव को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पुकारते हैं, तो वह हमारे दुख और कष्ट दूर करने जरूर आते हैं।

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