संपत्ति में बेटियों का भी होगा पूरा अधिकार..., राजस्व परिषद ने इस एक शब्द को हटाने का दिया सुझाव

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Published By Muskan Dixit
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लखनऊ, अमृत विचार: घर में बेटी जन्म लेती है तो कहा जाता है कि लक्ष्मी आई है लेकिन जीवन के एक पड़ाव पर जब बेटियों को उनके अधिकार देने की बात आती है तो हमारे परिवेश का अधिकांशत: दोहरा चरित्र सामने आता है। खासकर पैतृक संपत्ति में बेटियों के साथ भेदभाव और उस दौरान कानूनी झंझावत आम है।

इसी के मद्देनजर अब बेटियों को लेकर एक शब्द का संशोधन कर संपत्ति अधिकार का भेदभाव उत्तर प्रदेश में खत्म करने की तैयारी है। राजस्व परिषद ने इस भेदभाव को खत्म करने के लिए धारा 108(2) से अविवाहित शब्द हटाने का सुझाव दिया है। शासन स्तर पर परीक्षण के बाद यह प्रस्ताव कैबिनेट के समक्ष लाया जाएगा। चूंकि यह एक्ट में संशोधन से जुड़ा मामला है, इसलिए इसे विधानसभा और विधान परिषद दोनों से मंजूरी दिलाना अनिवार्य होगा। फिर राज्यपाल की स्वीकृति मिलते ही कानून लागू हो जाएगा।

दरअसल, पैतृक संपत्ति सिर्फ जमीन या घर नहीं है, यह पारिवारिक विरासत, साझा जड़ों और पीढ़ियों की यादों का प्रतीक होती है। पीढ़ियों से चली आ रही इस संपत्ति में अक्सर भावनात्मक जुड़ाव होता है जो परिवारों को उनके अतीत से जोड़ता है। लेकिन जब ऐसी संपत्ति में बेटी जो विशेषकर विवाहित हो को अधिकार देने में सिर्फ़ भावनाएं ही पर्याप्त नहीं होतीं, इसमें जटिल कानूनी बाध्यताएं, उत्तराधिकारियों के अधिकार और प्रक्रियागत जटिलताएं सामने आती है।

फिलहाल यूपी में इसका कानूनी हल निकालने की कवायद तेज हो चली है। वर्तमान उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 108 के अनुसार, कृषि भूमि का उत्तराधिकार सबसे पहले मृतक के पुत्र और पत्नी को मिलता है। पुत्र, पत्नी और अविवाहित पुत्री के न होने पर ही विवाहित पुत्री को अधिकार प्राप्त होता है। इस कारण, परिवार के अन्य सदस्यों के रहते हुए भी विवाहित पुत्रियों को लंबे समय से कोई अधिकार नहीं मिलता रहा है।

इसके विपरीत, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों में पहले से ही विवाहित बेटियों को अपने पिता की कृषि भूमि पर समान अधिकार देने के कानून हैं। इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश सरकार भी अब यहां विवाहित बेटियों को कृषि भूमि में हिस्सा देने की दिशा में कदम उठाने जा रही है। दरअसल, राजस्व परिषद के अधिकारियों के अनुसार, ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां विवाहित बेटियों, खासकर विधवा या तलाकशुदा बेटियों को, पैतृक कृषि भूमि पर कोई अधिकार दिए बिना बेसहारा छोड़ दिया जाता है। मौजूदा कानून के तहत कोई कानूनी सहारा न होने के कारण, राजस्व कार्यवाही के दौरान अक्सर उन्हें दावों से वंचित कर दिया जाता है।

कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, राजस्व परिषद के प्रस्ताव की समीक्षा सबसे पहले विधि एवं न्याय विभाग से होगी, उसके बाद विधानमंडल और वित्त विभाग द्वारा भी आवश्यक स्वीकृति प्राप्त होने के बाद, इसे कैबिनेट में पेश किया जाएगा, फिर विधानमंडल के दोनों सदनों से पारित किया जाएगा और राज्यपाल के हस्ताक्षर को भेजा जाएगा। हालांकि विवाहित बेटियों को आवंटित भूमि के हिस्से का प्रतिशत तय होना बाकी है और संभवत: इसका निर्धारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं करें।

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