मौनव्रत

Amrit Vichar Network
Published By Anjali Singh
On

मनुष्य के ज्ञान, स्वभाव का स्तर उसकी वाणी से पता चलता है। वाणी अपनी मिठास, तर्क, क्षमता एवं भाव संवेदना से दूसरों प्रभावित ही नहीं करती, अपितु प्रतिकूल से अनुकूल बना लेती है। कुशल वक्ता जनमानस को बदलकर और उसे अपने विचारों के अनुकूल धारा में बहा ले जाते हैं। लोक व्यवहार में सफलता-असफलता का बहुत कुछ आधार उसके भाषण संभाषण स्तर के साथ जुड़ा रहता है। इसी कारण जिव्हा को इन्द्रियों की गणना में एक नहीं दो माना गया है। 

वही वाकशक्ति भी और वही स्वादेन्द्रिय रसना भी है। इसका शासन संपूर्ण व्यक्तित्व एवं संपर्क परिकर पर छाया रहता है। अध्यात्म क्षेत्र में वाक्सिाद्धि का प्रयोजन मौन व्रत का अभ्यास करने से बन पड़ता है। निरंतर बोलते रहने से वाणी का प्रभाव क्षमता क्षीण होती है। अतएव विद्वतजन निरर्थक नहीं बोलते। सोच समझकर सीमित और अर्थपूर्ण शब्द कहते हैं, उनका थोड़ा सा भी बोलना घंटों बकवास करने की तुलना में कहीं ज्यादा प्रभावशाली होता है। 

मौन के विश्राम काल में इतना अवसर मिल जाता है कि पिछली गंदी आदतों को सुधारा- विचारा जा सके। मौनव्रत के द्वारा भावी कार्यकाल को सुगम बनाया जा सकता है। मौनकाल में विचारों की शक्ति सीमाबद्ध होती है। इसे इधर-उधर बिखेरने की अपेक्षा यदि वाक्शक्ति पर धार धरने में लगाया जा सके तो वह तीखी तलवार से भी अधिक सशक्त बनती है। मौन की पृष्ठभूमि में जप साधन ठीक प्रकार बन पड़ता है। ध्यान के लिए मौन व्रत अनिवार्य है। किसी दशा विशेष में प्राणशक्ति को नियोजित करने का अभ्यास करना हो तो उसका प्रथम चरण मौनव्रत ही हो सकता है। 

बांध खोलने पर जल का प्रचंड प्रवाह उछाल मारता है, यदि उसे सामान्य गति से बहने दिया जाए तो जल धारा सामान्य स्तर की ही बनकर रह जाती है। यही बात जिह्वा के संबंध में भी है। शक्ति संस्थानों में विचार के उपरांत वाणी का स्थान होता है। विचार सूक्ष्म हैं, वाणी स्थूल विचारों की परिधि को बेधकर किसी का भी अंतरंग पढ़ना कठिन है। मौन व्रत से उपासना की शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है और उस आधार पर निग्रहीत की गई जिह्वा जो कुछ कहती है, वह शुभ सत्य होकर रहता है। जिह्वा के कार्य क्षेत्र, लौकिक भी हैं और पारलौकिक भी। लोक व्यवहार में यह सबसे बड़ी क्षमता है। 

अध्यात्म में सत्संग विचार-विनिमय जिह्वा से ही संपन्न होते हैं। इन्हें मनन-चिंतन का प्रतीक स्वीकारना चाहिए। वाणी की सिद्धि प्राप्त करने के लिए मौन व्रत का ही अवलंबन लेना चाहिए। यदि किसी के लिए लंबी अवधि तक मौनव्रत न बन सके तो सप्ताह में एक दिन या दिन में दो-तीन घंटे की मौनव्रत रखना जीवन के लिए बहुत उपयोगी है।

संबंधित समाचार