पौराणिक कथा: संत का आर्शीवाद

Amrit Vichar Network
Published By Anjali Singh
On

महर्षि नारद वैकुंठ की यात्रा पर जा रहे थे, नारद जी को रास्ते में एक औरत मिली और बोली, मुनिवर आप प्रायः भगवान नारायण से मिलने जाते हैं। मेरे घर कोई संतान नहीं है आप श्री प्रभु से पूछना मेरे घर संतान कब होगी? नारद जी ने कहा ठीक है, पूछ लूंगा। इतना कहकर नारदजी नारायण-नारायण कहते हुए यात्रा पर चल पड़े। 

वैकुंठ पहुंचकर श्री नारायण जी ने नारदजी से जब कुशलता पूछी तो नारदजी बोले जब मैं आ रहा था तो रास्ते में एक औरत, जिसके घर कोई संतान नहीं है। उसने मुझे आपसे पूछने को कहा कि उसके घर पर संतान कब होगी। नारायण बोले तुम उस औरत को जाकर बोल देना कि उसकी किस्मत में संतान का सुख नहीं है।

नारदजी जब वापिस लौट रहे थे तो वह औरत बड़ी बेसब्री से नारदजी का इंतजार कर रही थी। औरत ने नारदजी से पूछा कि प्रभु नारायण ने क्या जवाब दिया इस पर नारदजी ने कहा प्रभु ने कहा है कि आपके घर कोई औलाद नहीं होगी। यह सुनकर औरत दहाड़े मारकर रोने लगी नारदजी चलते बने। कुछ समय बीत गया। गांव में एक संत मधुकरी के लिए आए और उस संत ने उसी औरत के घर के पास ही यह आवाज लगाई। 

संत की आवाज सुनकर वो औरत मधुकरी के लिए भोजन ले आई। दान पाकर संत ने उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया और जैसा उस संत ने कहा था वैसा ही हुआ। उस औरत के घर एक बेटा पैदा हुआ। उस औरत ने बेटे की खुशी में गरीबों में खाना बांटा और ढोल बजवाए।

कुछ वर्षों बाद जब नारदजी पुनः वहां से गुजरे तो वह औरत नारद जी को उलाहना देते हुए कहने लगी, क्यों नारदजी आप तो हर समय नारायण नारायण करते रहते हैं, आपने तो कहा था मेरे घर संतान नहीं होगी। यह देखो मेरा राजकुमार बेटा…फिर उस औरत ने उस संत के बारे में भी बताया।

अब नारदजी को इस बात का जवाब चाहिए था कि यह कैसे हो गया। वह जल्दी-जल्दी नारायण धाम की ओर गए और प्रभु से ये बात कही कि आपने कहा था कि उस औरत के घर संतान नहीं होगी। क्या उस संत में आपसे भी ज्यादा शक्ति है?
नारायण भगवान बोले आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है। मैं आपकी बात का जवाब बाद में दूंगा। पहले आप मेरे लिए औषधि का इंतजाम कीजिए। नारदजी बोले आज्ञा दीजिए प्रभु, श्री नारायण बोले नारदजी आप भूलोक जाइए और एक कटोरी रक्त लेकर आइए। नारदजी कभी इधर कभी उधर घूमते रहे पर प्याले भर रक्त नहीं मिला। 

उल्टा लोग उपहास करते कि नारायण बीमार हैं। चलते-चलते नारदजी किसी जंगल में पहुंचे। वहां पर वही संत मिले, जिसने उस औरत को बेटे का आशीर्वाद दिया था। वो संत नारदजी को पहचानते थे, उन्होंने कहा अरे नारदजी आप इस जंगल में इस समय क्या कर रहे हैं। इस पर नारदजी ने जवाब दिया। 

मुझे प्रभु ने किसी इंसान का रक्त लाने को कहा है। यह सुनकर संत खड़े हो गए और बोले कि प्रभु ने किसी इंसान का रक्त मांगा है। संत ने कहा आपके पास कोई छुरी या चाक़ू है? नारदजी ने कहा कि वह तो मैं हाथ में लेकर घूम रहा हूं। उस संत ने अपने शरीर से एक प्याला रक्त दे दिया। नारदजी वह रक्त लेकर नारायण जी के पास पहुंचे और कहा आपके लिए मैं औषधि ले आया हूं।

नारायण ने कहा यही आपके सवाल का जवाब भी है, जिस संत ने मेरे लिए एक प्याला रक्त मांगने पर अपने शरीर से इतना रक्त भेजकर मुझे अपना ऋ णी बना लिया है, जो मुझसे इतना प्रेम करता हो, क्या उस संत के आशीर्वाद देने पर मैं किसी को बेटा भी नहीं दे सकता? उस बांझ औरत के लिए प्रार्थना आप भी तो कर सकते थे, पर आपने ऐसा नहीं किया। रक्त तो आपके शरीर में भी था, पर आपने नहीं दिया।

संबंधित समाचार