नैनो तकनीक से तैयार पौधे खत्म करेंगे प्रदूषण... लखनऊ विश्वविद्यालय और उत्तराखंड, हिमाचल, पंजाब विश्वविद्यालय का संयुक्त शोध
लखनऊ, अमृत विचार: नैनो प्रौद्योगिकी के प्रयोग से सूक्ष्म कणों को तैयार किया गया है, जिनसे तैयार पौधे पर्यावरण प्रदूषण को नष्ट करेंगे। लखनऊ विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉ. अलका कुमारी ने देश के चुनिंदा वैज्ञानिकों के साथ मिलकर नैनो प्रौद्योगिकी संवर्धित पौध आधारित प्रदूषण नियंत्रण पर कार्य किया है। जिसे अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
इस शोध का केंद्र फाइटोरिमेडिएशन है जो प्राकृतिक प्रक्रिया है। जिसमें पौधे प्रदूषित मिट्टी और जल को शुद्ध करने में मदद करते हैं। हालांकि अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में पौधों की वृद्धि और कार्यक्षमता अक्सर सीमित हो जाती है। इस चुनौती से निपटने के लिए शोध में नैनोमटेरियल्स के उपयोग को नए समाधान के रूप में प्रस्तुत किया गया है। नैनोमटेरियल्स अतिसूक्ष्म कण होते हैं, जो पौधों की क्षमता को बढ़ाते हैं ताकि वे हानिकारक रासायनिक पदार्थों को अधिक कुशलता से अवशोषित, विघटित या निष्क्रिय कर सकें।
नैनोमटेरियल्स की भूमिका
शोध में बताया गया है कि लोहा, जिंक ऑक्साइड, टाइटेनियम डाइऑक्साइड, कार्बन नैनोट्यूब्स, ग्राफीन और बायोचार जैसे नैनोमटेरियल्स पौधों की प्रदूषण सहन करने की क्षमता बढ़ाते हैं। साथ ही उनकी वृद्धि में सुधार करते हैं, और मिट्टी में उपयोगी सूक्ष्मजीवों की सक्रियता को प्रोत्साहित करते हैं। इन सभी के संयुक्त प्रभाव से पौधे भारी धातुओं, कीटनाशकों, रंगों और माइक्रोप्लास्टिक जैसे खतरनाक प्रदूषकों को पर्यावरण से अधिक तेज़ी से हटाने में सक्षम होते हैं।
हरित तकनीकों की दिशा में कदम
वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रयोगशाला स्तर पर परिणाम अत्यंत उत्साहजनक हैं। विशेष रूप से इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि ग्रीन सिंथेसिस तकनीक जिसमें नैनोमटेरियल्स का निर्माण पौधों के अर्क या सूक्ष्मजीवों की मदद से किया जाता है को अपनाना सतत् और पर्यावरण सुरक्षित समाधान सुनिश्चित कर सकता है।
इन वैज्ञानिकों ने किया शोध
वनस्पति वैज्ञानिकों डॉ. नितेश कुमार, डॉ. रुचिका देवी, डॉ. सुशीला देवी, डॉ. सोमवीर सिंह, डॉ. आनंद सिंह बिष्ट, डॉ. जितेंद्र कुमार, डॉ. अलका कुमारी, डॉ. नेहा नेहा, डॉ. सान्या चौहान, डॉ. आरती शर्मा और डॉ. राहुल कुमार के संयुक्त प्रयास का परिणाम है।
यह संस्थान रहे शामिल
लखनऊ विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हिमाचल प्रदेश, वी.सी.एस.जी. उत्तराखंड यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री, यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (मोहाली), अभिलाषी विश्वविद्यालय (मंडी) व डीएवी विश्वविद्यालय (जालंधर) शामिल हैं।
यह शोध पारंपरिक पौध आधारित पर्यावरणीय समाधानों को आधुनिक नैनोप्रौद्योगिकी के साथ जोड़ने की दिशा में एक बड़ा कदम है। ऐसी नवाचारपूर्ण तकनीकि हमें प्रदूषण की समस्या से पर्यावरण अनुकूल, किफायती और टिकाऊ तरीके से निपटने में मदद कर सकती हैं।
प्रो. अलका कुमारी, लखनऊ विश्वविद्यालय
