हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को लगाई फटकार : मर चुके शिक्षक को किया था बर्खास्त

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग की गंभीर प्रशासनिक चूक पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि मृत व्यक्ति के खिलाफ बर्खास्तगी की कार्यवाही शुरू किया जाना कानून और न्याय दोनों के प्रतिकूल है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से प्रश्न उठाया कि कोविड-19 महामारी के दौरान एक वर्ष पूर्व मृत सहायक शिक्षक के खिलाफ सेवा समाप्ति की प्रक्रिया किस कानूनी प्रावधान के तहत शुरू की गई। 

उक्त आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की एकलपीठ ने स्वर्गीय मुकुल सक्सेना की विधवा प्रीति सक्सेना द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। कोर्ट ने शिक्षा निदेशक (बेसिक) को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया है कि 18 जुलाई 2022 को मृत कर्मचारी को बर्खास्त करने का निर्देश किस आधार पर और किन परिस्थितियों में जारी किया गया, जबकि उनकी मृत्यु मई 2021 में ही हो चुकी थी। 

कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि एक सप्ताह में हलफनामा दाखिल न होने पर निदेशक को अगली तिथि पर न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ेगा। मामले के अनुसार याची के पति स्वर्गीय मुकुल सक्सेना प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे और मई 2021 में कोविड के कारण उनका निधन हो गया था। याची को पारिवारिक पेंशन नवंबर 2022 तक प्राप्त होती रही, लेकिन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, फर्रुखाबाद के पत्र के आधार पर इसे अचानक रोक दिया गया। इस पत्र में शिक्षा निदेशक द्वारा जारी आदेश का हवाला देते हुए मृतक की सेवाओं को बर्खास्त करने का निर्देश दिया गया था, जिसके आधार पर कोषागार एवं पेंशन विभाग ने पारिवारिक पेंशन बंद कर दी।राज्य की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि नियुक्ति कथित रूप से जाली दस्तावेजों के आधार पर प्राप्त की गई थी, इसलिए उसे प्रारंभ से ही अवैध माना गया। 

कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि रिकॉर्ड में कहीं भी ऐसा नहीं दर्शाया गया कि मृतक की नियुक्ति को अमान्य घोषित करने का कोई वैध आदेश कभी पारित किया गया हो। अंत में कोर्ट ने विभागीय आचरण को गंभीरता से लेते हुए टिप्पणी की कि यह “अत्यंत आश्चर्यजनक” है कि किसी मृत कर्मचारी के विरुद्ध विभागीय जांच और बर्खास्तगी की कार्यवाही शुरू कर दी गई। न्यायालय ने कहा कि यह स्थापित विधि है कि मृत व्यक्ति के खिलाफ न तो जांच और न ही दंडात्मक कार्यवाही प्रारंभ की जा सकती है। अब इस मामले की अगली सुनवाई आगामी 16 दिसंबर को होगी।

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