कानपुर : सीजीएम एप में पता चलेगी बच्चों में इंसुलेंन, काब्रोहाइट्रेड व शुगर की मात्रा
डायाबडी नाम से स्पैड ने तैयार किया है एक एप, बच्चों पर हुई हैं रिसर्च
कानपुर, अमृत विचार। डायबिटीज ग्रस्त बच्चों के लिए एक कंटीन्यूअस ग्लूकोज मॉनिटरिंग (सीजीएम) के लिए डायाबडी ऐप तैयार किया गया है। टाइप-1 डायबिटीज के लिए यह ऐप ग्लूकोज स्तर को लगातार ट्रैक करके ट्रेंड दिखाता है और हाइपोग्लाइसीमिया (लो ब्लड शुगर) और हाइपरग्लाइसीमिया ( हाई ब्लड शुगर) से बचाने में मदद करता हैं, जिससे इंसुलिन डोज को एडजस्ट करना आसान हो जाता है। ये ऐप सेंसर से डेटा लेकर स्मार्टफोन पर रियल-टाइम रीडिंग, ग्राफ और अलर्ट देते हैं, जीवन की गुणवत्ता सुधारने में मदद करता है। बच्चों को इंसुलिन, काब्रोहाइट्रेड व शुगर की मात्रा पता चलती है।
रीजेंसी हॉस्पिटल के डॉ.अनुराग बाजपेयी ने बताया कि जून माह से अक्टूबर माह तक टाइप-1 डायबिटीज ग्रस्त 25 बच्चों पर एक रिसर्च की गई है, जिनकी लगातार 14 दिनों तक कंटीन्यूअस ग्लूकोज मॉनिटरिंग की गई। इसकी मदद से बच्चों का एचबीए1सी कम हुआ और हाइपोग्लाइसीमिया के स्तर में तीन गुना सुधार हुआ।
स्पैड द्वारा बनाए गए डायाबडी एप पर 10 हजार भारतीय आइटम है, जिसकी मदद से बच्चे खुद कार्बोहाइड्रेट, शुगर, इंसुलिन आदि की मात्रा खुद माप कर संबंधित खाद पदार्थ का सेवन सीमित मात्रा में कर सकते हैं। इस रिसर्च को काफी सराहा गया है, इसलिए इसे प्रकाशन के लिए भेजा है।
बताया कि एप की मदद से संबंधित टाइप-1 डायबिटीज गस्त बच्चा पूरे दिन के साथ ही बीते हफ्ते की इंसुलिन, शुगर, कार्बोहाइड्रेट व आदि यूनिट का भी हिसाब रख सकता है। इसके अलावा अगर बच्चे को खांसी, जुकाम, बुखार या इंफेक्शन है तो यह एप तबीयत खराब होने की स्थिति में भी शुगर व किटोन के आधार पर इंसुलिन की डोज निर्धारित कर बताएगा।
रिसर्च का प्रकाशन होने के बाद सबसे पहले इसे 10 सेंटरों पर 500 बच्चों से इसकी शुरुआत किए जाने की योजना तैयार की गई है। ताकि बच्चों बीमारी के प्रति जागरूक हो और बीमारी ग्रस्त है तो एप की मदद से उनको हर स्थिति की जानकारी आसानी से मिल सके।
माता-पिता से बच्चों में फैलने के चांस कम
गोरखपुर के डॉ.आलोक कुमार गुप्ता ने बताया कि लोगों में एक मिथ्य है कि टाइप-1 डायबिटीज माता-पिता से बच्चों में भी हो सकता है, लेकिन इसकी संभावना काफी कम होती है। अगर पिता टाइप-1 डायबिटीज ग्रस्त है तो बच्चे में सिर्फ चार फीसदी और मां टाइप-1 डायबिटीज ग्रस्त है तो सिर्फ तीन फीसदी ही संभावना रहती है। 97 फीसदी संभावना नहीं रहती है। वहीं, अगर माता-पिता दोनों ही टाइप-1 डायबिटीज पीड़ित है, तब भी बच्चे में सिर्फ छह से सात फीसदी ही चांस होते हैं। नियंत्रण के लिए मॉनिटरिंग और इंसुलिन की डोज जरूरी हैं।
मुंबई से आई टाइप-1 डायबिटीज ग्रस्त रिद्दी मोदी ने बताया कि जब उन्हें इस समस्या के बारे में पता चला तो उनके साथ ही पूरा परिवार काफी परेशान हो गया था। शुरुआत में प्यास व थकान अधिक लगती है, बार-बार पेशाब की समस्या होती और वजन भी कम होने लगता है। ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी सही डॉक्टर से सटीक डायग्नोसिस अहम है। इसका इंसुलिन के अलावा कोई इलाज नहीं है। इसके साथ ही स्वस्थ रहने के लिए खानपान और जीवनशैली में भी बदलाव किया। वहीं, एक्सरसाइज का भी इसमे विशेष रोल होता है। सीधे शुगर नहीं खानी चाहिए।
टाइप-1 डायबिटीज में चार फीसदी रहते टीबी के चांस
प्रयागराज से आई डॉ.अनुभवा गुप्ता ने बताया कि टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों को टीबी होने का खतरा सामान्य लोगों से 2 से चार गुना अधिक होता है, क्योंकि डायबिटीज शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम कर देती है, जिससे टीबी जैसे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। खासकर अगर ब्लड शुगर नियंत्रित न हो, तो यह जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए डॉक्टर अब टीबी के लक्षणों वाले मरीजों में शुगर की जांच कर रहे हैं और डायबिटीज के मरीजों में टीबी की जांच को प्राथमिकता दे रहे हैं।
पेट दर्द, उल्टी व बेहोशी को न करे नजरअंदाज
पीडियाट्रिक्स एंडोक्रेनोलॉजी के जनक डॉ.पीएसएन मेनन ने बताया कि बच्चों को अगर पेट में दर्द, उल्टी, बुखार, दौरा, बेहोशी, सांस लेने में तकलीफ व इंफेक्शन आदि समस्या हो तो एक बार उनकी शुगर की जांच जरूर करानी चाहिए। यूरिन में किटोन मापना चाहिए। वहीं, बच्चे को अगर ज्यादा प्यास लगती है और यूरिन होता है तो आम समस्या समझ लापरवाही नहीं करना चाहिए। क्योंकि टाइप-1 डायबिटीज ग्रस्त बच्चों में यह लक्षण देखे गए है। वहीं, बच्चों को वॉक या रनिंग करते समय एयरबड्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और न ही अधिक तनाव लेना चाहिए।
टाइप-1 डायबिटीज से हृदय रोग का खतरा
हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.श्रीपद ने बताया कि टाइप-1 डायबिटीज से हृदय संबंधी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि यह रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है, जिससे कोरोनरी धमनी रोग, हार्ट अटैक, स्ट्रोक और धमनियों के सिकुड़ने जैसी गंभीर समस्याएं भी हो सकती हैं। वहीं, यह समय से पहले हृदय रोगों का प्रमुख कारण भी बनता है, इसलिए ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है। डॉ.निर्भय कुमार व डॉ.सुकांत पांडेय ने टाइप-1 डायबिटीज से होनी वाली जटिलताओं की जानकारी दी। बताया कि इंसुलिन व डॉक्टरों द्वारा बताए गए नियमों का पालन करने पर डायबिटीज ग्रस्त व्यक्ति लंबे समय तक जीवन व्यतीत कर सकता है।
यह लोग रहे मुख्य रूप से मौजूद
अहमदाबाद से डॉ.विपुल चावड़ा, मुंबई से डॉ.पूर्वी चावला, बैंग्लोर से डॉ.अर्पण भट्टाचार्य, बेलगांव से डॉ.सुजाता जाली, लखनऊ एसजीपीआई से डॉ.प्रीति दबडगांवकर, पुणे से डॉ.कल्पना जोग, औरंगाबाद से डॉ.अर्चना, ऑस्ट्रेलिया सिडनी से डॉ.ग्राहम ओगले, आरएसएसडीआई के अध्यक्ष डॉ.अनुज माहेश्वरी, एंडोक्राइन सोसाइटी के सचिव डॉ.हरिकुमार, पेडिएट्रिक एंडोक्राइन सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ.अनुराग बाजपेयी, चंडीगढ़ से डॉ.राकेश कुमार, चेयरमैन डॉ.रिषी शुक्ला, डॉ.अतुल कपूर, डॉ. दीपक यागनिक, डॉ.संगीता शुक्ला, डॉ.भास्कर गांगुली, डॉ.सौरभ मिश्रा, डॉ.मनीषा गुप्ता, डॉ.विभा यादव, सुमित गुप्ता, अशोक तनेजा, सीताराम खत्री, प्रवीण सचदेवा, हरि सिंह कुश्वाहा, मीना श्रीवास्तव, सुधा श्रीवास्तव, रंजना सक्सेना, इंदु पांडेय, तरविंदर, स्पैड कोर ग्रुप के सदस्य गुलशन चावला, एसके श्रीवास्तव, ओम प्रकाश बदलानी और भोला नाथ समेत आदि लोग रहे।
