हाईकोर्ट का फैसला : यूटीआरसी की रिपोर्ट के बिना लंबी कैद में स्वत: रिहाई का दावा मान्य नहीं
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेल में लंबे समय से निरुद्ध कैदियों की स्वत: रिहाई के मामले में कहा कि केवल बीएनएसएस की धारा 479 के आधार पर अर्थात अधिक अवधि तक कारावास भुगतने के कारण स्वतः रिहाई का दावा तभी मान्य हो सकता है, जब यह प्रक्रिया अंडरट्रायल रिव्यू कमेटी (यूटीआरसी) द्वारा पूरी कर सिफारिश भेजी जाए।
कोर्ट यूटीआरसी की अनिवार्य प्रक्रिया पूरी हुए बिना सीधे आरोपी को बीएनएसएस की धारा 479 का लाभ देकर रिहाई का आदेश नहीं दे सकती। उक्त स्पष्टीकरण न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की एकलपीठ ने आद्या प्रसाद तिवारी की जमानत अर्जी को खारिज करते हुए दिया। कोर्ट के समक्ष बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपी 22 सितंबर 2021 से जेल में है और आरोपी द्वारा किए गए अपराध की अधिकतम सजा 10 वर्ष है, इसलिए एक-तिहाई अवधि पूरी होने पर प्रथम अपराधी (जिसने पहली बार अपराध किया हो) होने के कारण धारा 479 के तहत रिहाई अनिवार्य है। जेल अधीक्षक की चिट्ठी का हवाला देकर कहा गया कि आरोपी ने शर्तें पूरी कर ली हैं।
वहीं सीबीआई और पीड़ित पक्ष की ओर से कड़ी आपत्ति जताते हुए कोर्ट का ध्यान इस ओर आकर्षित किया गया कि धारा 479 की व्याख्या में स्पष्ट है कि जो अवधि आरोपी की वजह से कार्यवाही में विलंब होने से बीती हो उसे गणना में शामिल नहीं किया जाएगा। अभियोजन के अनुसार आरोप तय होने में देरी और बाद की तारीखों पर भी कार्यवाही में रुकावट आरोपी व उसके अधिवक्ताओं के कारण हुई।
कोर्ट ने माना कि धारा 479 एक लाभकारी प्रावधान है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार पहले यूटीआरसी द्वारा पात्रता की पहचान और अनुशंसा अनिवार्य है, जिसके बाद ही कोर्ट रिहाई पर विचार कर सकती है। हालाँकि कोर्ट ने जमानत अर्जी को मौजूदा चरण में अस्वीकार किया, लेकिन मामले में आगे की कार्यवाही पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि न्याय के हित में यूटीआरसी इस मामले की समीक्षा कर यह अनुशंसा दे कि आरोपी को धारा 479 के तहत रिहाई दी जानी चाहिए या नहीं। समिति को आदेश की तामील के दो माह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
