फर्जी अंकपत्र का खेल: दो रजिस्ट्रार हुए निलंबित फिर भी गिरोह का नहीं रूका काम, फर्जीवाड़ा गिरोह पर शिकंजा कसने पर पूरी तरह नाकाम रहा विभाग
प्रयागराज व कुशीनगर अब बरेली में भी बाबूओं की कारस्तानी ने कराई फजीहत
लखनऊ, अमृत विचार: मदरसा बोर्ड में फर्जी अंकपत्र गिरोह की जड़े इतनी गहराई तक फैली हुई हैं कि दो रजिस्ट्रार के निलंबन हो चुके हैं। इसके बाद भी इस गिरोह पर शिकंजा कसने में विभागीय अधिकारी नाकाम है। खास बात यह कि रजिस्ट्रार पर कार्रवाई तो हो गई, लेकिन इस गिरोह में शामिल विभागीय बाबुओं पर आंच तक नहीं आई। चाहे प्रयागराज का मामला हो या कुशीनगर या फिर बरेली में फर्जी नियुक्ति का मामला। हर जगह बाबुओं की कारस्तानी ने बोर्ड की फजीहत कराई है। चेयरमैन के दबाव में एक बाबू को निलंबित किया गया, पर चार्जशीट नहीं लगाई जा सकी।
मदरसा बोर्ड में फर्जी अंकपत्र गिरोह के खेल में फंसकर दो रजिस्ट्रार निलंबित हो चुके हैं। विजिलेंस की जांच भी हुई। मामला मंडलायुक्त कार्यालय तक पहुंचा। पर बाबुओं पर कोई आंच नहीं आई है। कुशीनगर के बहुचर्चित मामले में तत्कालीन रजिस्ट्रार जगमोहन सिंह बिष्ट ने दो रिपोर्ट दी। जिसमें दो अलग-अलग रिपोर्ट भेजी। शासन ने जांच मंडलायुक्त बस्ती को सौंपी और रजिस्ट्रार साहब डेढ़ साल तक निलंबित रहे। वहीं, प्रयागराज के एक मदरसे में बाबुओं की कारस्तानी के कारण पूर्व रजिस्ट्रार पर विजिलेंस जांच भी बैठ गई। चेयरमैन के दबाव में इस बाबू को एक बार निलंबित भी किया गया, लेकिन चार्जशीट तक जारी न हो सकी और दो महीने में वे बहाल हो गए, जबकि असली खेल करने वाले बाबू, कम्प्यूटर सहायक और गिरोह के अन्य सदस्य टेबलों के पीछे सुरक्षित बचे रहे।
तीन जनपदों में कंप्यूटर सहायक शिक्षक व प्रधानाचार्य बने
मदरसा बोर्ड में फर्जीवाड़ा का आलम यह है कि शाहजहांपुर, बरेली और आगरा में राज्यानुदानित मदरसों में सहायक शिक्षक और प्रधानाचार्य भी फर्जी अंकपत्र के आधार पर बन गये। अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के कार्यालय में कार्यरत रहे तीन कंप्यूटर आपरेटर फर्जी अंकपत्र गिरोह के कारण प्रधानाचार्य व सहायक शिक्षक आलिया की कुर्सी तक पहुंचे। इन सभी ने न तो कोई पढ़ाई की और न ही कोई अनुभव हासिल किया। सिर्फ फर्जी अंकपत्र गिरोह की कृपा से सरकार से हर माह मोटा वेतन वसूल रहे हैं। इन मामलों की जानकारी होने के बाद पिछले कुछ महीनों में मदरसा बोर्ड के उपाध्यक्ष एवं निदेशक, अल्पसंख्यक कल्याण अंकित अग्रवाल के हस्तक्षेप से मार्कशीट, टेबुलेशन रजिस्टर और अन्य अभिलेखों के डिजिटाइजेशन की उम्मीद जगी है। इसी कारण बोर्ड का मार्कशीट गैंग और ज्यादा सक्रिय हो गया है। क्योंकि हर सुधार के साथ इनका कारोबार चौपट होने का डर बढ़ता है। वर्तमान रजिस्ट्रार के एक आदेश ने इस गिरोह के काले कारोबार पर रोक लगाने की मजबूत पहल की है। जहाँ सुविधा शुल्क देकर किसी भी वर्ष की मार्कशीट में संशोधन संभव था। वहीं, अब यह अमल में लाया जा रहा है कि सिर्फ एक वर्ष के भीतर निर्गत मार्कशीट में ही संशोधन स्वीकार होगा। द्वितीय प्रति किसी भी समय उपलब्ध कराई जा सकेगी।
