देवरिया: पंडित राम चन्द्र शर्मा- एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने देश के नाम कर दिया अपना जीवन
देवरिया। देवरिया इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज्य देखेंगे,जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने वाले वीर सपूतों के बलिदानों को भुलाया नहीं जा सकता, क्योंकि उन्होंने देश की आन-बान और शान के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। इनमें …
देवरिया। देवरिया इलाही वह भी दिन होगा जब अपना राज्य देखेंगे,जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने वाले वीर सपूतों के बलिदानों को भुलाया नहीं जा सकता, क्योंकि उन्होंने देश की आन-बान और शान के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। इनमें कुछ स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी थे जिन्होने देश प्रेम के लिये घर परिवार सब छोड़ दिया था और ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लिया था। ये नमक सत्याग्रह में जेल भी गये। जिनकी गाथा आज भी लोगो की दिलो में है।
दरअसल हम बात कर रहें हैं उस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की जिन्होंने देश के लिये सब कुछ न्योक्षावर कर दिया था। उस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का नाम था पंडित राम चन्द्र शर्मा की जिनकी गणना उन कुछ गिने चुने लोगो में की जाती है, जिनके जीवन का उद्देश्य व्यक्तिगत सुख लिप्सा न होकर समाज के लोगो के हित के लिए अत्मोत्सर्ग रहा है। यही कारण है कि स्वतंत्रता संग्राम मे अपने योगदान के पश्चात पंडित जी ने अपना संघर्ष समाप्त नहीं होन दिया। वे आजीवन मानवता के कल्याण में लगे रहे।
स्व पंडित राम चन्द्र शर्मा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का जन्म 7 मार्च 1902 को जिले के अमवा तिवारी गांव मे हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप पाण्डेय व माता का नाम निऊरा देवी थी। पंडित राम चन्द्र शर्मा अपने पांच बहनों के इकलौते भाई थे। पंडित जी उच्च शिक्ष प्राप्त नहीं कर सके किंतु स्वाध्याय और बाबा राघव दास के सानिध्य में इन्होंने इतना ज्ञानार्जन किया कि उन्हें किसी विश्वविद्यालय की डिग्री की जरूरत नही पड़ी।
पंडित जी का बचपन में ही हो गया था विवाह
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राम चन्द्र शर्मा की शादी बचपन मे उनके पिता ने अपने गांव अमवा से चार किलो मीटर उत्तर दिशा में ग्राम दुबौली के पंडित राम अधीन दुबे की पुत्री लवंगा देवी के साथ करा दी थी।
बाबा राघव दास से लिया था दीक्षा
पंडित राम चन्द्र शर्मा बाबा राघव दास से दीक्षा लेने के बाद वह अपने माता पिता और परिवार के सदस्यों को छोड़ कर देश की आजादी और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। बाबा राघव दास ने ही उनका नाम राम चन्द्र पांडेय से बदल कर राम चन्द्र शर्मा कर दिया था।
1927 में नमक सत्याग्रह में पहली बार गये थे जेल
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राम चन्द्र शर्मा पहली बार सन 1927 में नमक सत्याग्रह में जेल गये थे। इसके बाद सन 1928 में भींगारी बाजार में नमक कानून तोड़कर वह बाबा राघव दास के साथ जेल गये। जिसके बाद बाबा राघव दास ने उन्हें जेल में राजनीति का पाठ पढ़ाया था।
सन 1930 में नेहरू के साथ गोरखपुर में हुये थे गिरफ्तार
पंडित राम चन्द्र शर्मा सन 1930 में पंडित नेहरू के नेतृत्व में गोरखपुर में सत्याग्रह करते समय गिरफ्तार हुये थे। जिसके बाद सन 1932 मे थाना भोरे जिला सिवान (बिहार) मे उनकी गिरफ्तारी हुई थी और गोपालगंज जिला जेल में बन्द रहे। 1933 में पटना में सत्याग्रह करते समय गिरफ्तार हुए और 1 वर्ष तक दानापुर जेल में बंद रहे। 1939 में लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. सम्पूर्णा नन्द कमलापति त्रिपाठी के साथ बनारस आंदोलन के समय गिरफ्तार हुए थे। कुछ दिनों बनारस जेल में रहने के पश्चात उन्हें बलिया जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था।
सन 1942 भारत छोड़ो आंदोलन में रहे शामिल
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राम चन्द्र शर्मा 10 अगस्त सन 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार हुये और उन्हें जेल भेजा गया। इस बार जब वो जेल भेजे गये थे। तो इनके पिता राम प्रताप पाण्डेय का निधन हो गया था। फिर भी अंग्रेजों ने उन्हें नही छोड़ा। उनके पिता की इच्छा थी कि वह एक बार अपने पुत्र को देख ले लेकिन उनकी इच्छा अधूरी रह गयी।
जेलर ने कहा माफी मांग लो छोड़ दूंगा
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व पंडित राम चन्द्र शर्मा के पौत्र इंजीनियर द्वारिका पाण्डेय ने बताया कि दादा जी के पिता के निधन के बाद जेलर ने उनसे कहा था कि माफी मांग लो तुमको छोड़ दूंगा। लेकिन वो अपनी बात पर अड़े रहे। और उन्होंने जेलर से कहा था कि मेरी कोई गलती ही नही किया है तो माफी मांगने का कोई सवाल ही नही उठता।
जिसके बाद जेल में बन्द उनके साथ और स्वतंत्रता सेनानियों ने उन्हें बहुत समझाया और कहा था कि माफीनामा ऐसे समय में देने में कोई बुराई नहीं है। पिता के अंतिम दर्शन हो जायेगें।फिर भी उनका कहना था आज़ादी की लड़ाई अपने अंतिम पड़ाव पर है हम लोगों को कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे पूरे देश में हो रहे लाखों लोगों का बलिदान व्यर्थ होने पाये।
पिता जी की मृत्यु के बाद 1945 में इनकी माता निउरा देवी भी दिवंगत हो गयीं। इनकी पत्नी श्रीमती लवंगा देवी भी स्वतंत्र भारत देखने से वंचित रहीं। 14 अगस्त 1947 को इनका भी निधन हो गया किन्तु पंडित जी के लिए राष्ट्र के सुख दुःख के समक्ष व्यक्तिगत सुख दुःख का अर्थ नहीं रह गया था। उन्हें प्रसन्नता इस बात की थी की 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हो गया था।
सन 1947 में कांग्रेस के जिला मंत्री चुने गये
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राम चन्द्र शर्मा 1947 मे कांग्रेस के जिला मंत्री निर्वाचित चुने गये लेकिन कुछ समय बाद कांग्रेस में हो रही गतिविधियों से उनका मोह भंग हो गया और सन 1952 में मार्क्स के दार्शनिक चिंतन से अत्यंत प्रभावित होकर वह जीवन पर्यंत एक सच्चे समाजवादी के रूप में संघर्षरत रहे।
उत्तराखंड में मिली थी 7 एकड़ जमीन को गरीबो को कर दिया था दान
पंडित जी के पौत्र द्वारिका पाण्डेय ने बताया कि देश के सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार ने 7 एकड़ जमीन दी थी। जिसमे दादा जी को भी जमीन मिली थी लेकिन उन्होंने यह जमीन लेने से मना कर दिया और उन्होंने उस जमीन को गरीबो के नाम करवा दिया। इसके साथ ही उन्होंने पेंशन लेने से भी मना कर दिया था। बाद में उनके सहयोगियों ने उनको समझाया जिसके बाद उन्होंने 10 वर्षो के बाद पेंशन लिया।
पंडित राम चन्द्र शर्मा ने 26 अगस्त 1992 में ली अंतिम सांस
पंडित राम चन्द्र शर्मा ने 26 अगस्त 1992 को अंतिम सांस ली। उनके अंतिम दर्शन के लिये हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी थी और राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ।
