सम्मेलन की महत्ता

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क्वाड समूह के नेताओं के शिखर सम्मेलन से पहले बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष स्कॉट मॉरीसन से बात की। दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय परिस्थितियों और क्वाड के आगामी शिखर सम्मेलन के बारे में भी चर्चा की। प्रधानमंत्री अगले सप्ताह अमेरिका जाएंगे और 24 सितंबर को क्वाड समूह के नेताओं के शिखर सम्मेलन …

क्वाड समूह के नेताओं के शिखर सम्मेलन से पहले बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष स्कॉट मॉरीसन से बात की। दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय परिस्थितियों और क्वाड के आगामी शिखर सम्मेलन के बारे में भी चर्चा की। प्रधानमंत्री अगले सप्ताह अमेरिका जाएंगे और 24 सितंबर को क्वाड समूह के नेताओं के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की चुनौतियों के बीच क्वाड के शिखर सम्मेलन को बेहद अहम माना जा सकता है।

क्वाड भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता मंच है। क्वाड की अवधारणा औपचारिक रूप से सबसे पहले वर्ष 2007 में जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने पेश की थी, हालांकि चीन के दबाव में ऑस्ट्रेलिया के पीछे हटने के कारण इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका। नवंबर 2017 में इसमें शामिल चारों देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग को खुला रखने के संबंध में नई रणनीति विकसित करने के लिए क्वाड के गठन के लंबित प्रस्ताव को आकार दिया था।

दरअसल, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करता रहा है लेकिन क्वाड समूह द्वारा उसके प्रयासों का विरोध किया जा रहा है। चीन को लगता है कि क्वाड उसके विरोध में बनाया गया समूह है। कुछ समय पहले चीन ने क्वाड समूह को एशिया का नाटो कहा था। इसके जवाब में हाल ही में भारत आए ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री और भारत के विदेश मंत्री ने कहा था कि क्वाड एक ऐसा मंच है, जहां चार देश अपने लाभ और दुनिया के लाभ के लिए सहयोग करने आए हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि मुझे लगता है कि नाटो जैसा शब्द शीत युद्ध का शब्द है, जबकि क्वाड भविष्य को देखता है।

दरअसल दुनिया की तेल आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा हिंद महासागर से गुजरता है। उन तेल आपूर्ति की सुरक्षा पूरे क्षेत्र की समृद्धि के लिए आवश्यक है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में प्रतिद्वंद्विता भी है। चीन अब चारों ओर सुविधाएं विकसित कर रहा है। वह बड़े पैमाने पर क्षेत्र का रणनीतिक नियंत्रण लेने की कोशिश कर रहा है।

जाहिर है भारत के लिए इसके गंभीर सुरक्षा निहितार्थ हैं और इसलिए हम शांति बनाए रखने के लिए अन्य देशों के साथ सहयोग में एक रणनीति विकसित कर रहे हैं। यह शिखर सम्मेलन चारों देशों के नेताओं के बीच समकालीन वैश्विक मुद्दों पर बातचीत का अच्छा अवसर होगा। जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को स्वतंत्र, खुला और समावेशी बनाने के साझा दृष्टिकोण पर आधारित होगा।