मुरादाबाद : गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल थे विधायक संदीप अग्रवाल

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सलमान खान/ मुरादाबाद, अमृत विचार। आधी रात को भी अगर कोई फरियादी अपनी परेशानी लेकर उनके दर पर जाता तो वह उसे मायूस नहीं भेजते थे। उसी समय अपनी गाड़ी निकालकर वह लोगों के साथ चल देते थे। यही वजह थी कि उस विधायक को भाजपा के टिकट पर 30 प्रतिशत वोट मुस्लिम मिलता था। …

सलमान खान/ मुरादाबाद, अमृत विचार। आधी रात को भी अगर कोई फरियादी अपनी परेशानी लेकर उनके दर पर जाता तो वह उसे मायूस नहीं भेजते थे। उसी समय अपनी गाड़ी निकालकर वह लोगों के साथ चल देते थे। यही वजह थी कि उस विधायक को भाजपा के टिकट पर 30 प्रतिशत वोट मुस्लिम मिलता था। उनका चुनाव हिंदू-मुस्लिम मिलकर लड़ाते थे।

चुनाव के समय नगर विधान सभा क्षेत्र के मुस्लिम मोहल्लों में लोग उन्हे सिक्कों से तोलते थे। जी हां ऐसी शख्सियत के मालिक थे नगर विधायक संदीप अग्रवाल। लोग उन्हे गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल कहा करते थे। यहीं वजह थी उन्होंने चार बार नगर विधान सभा सीट पर जीत हासिल की।

मुरादाबाद की नगर विधानसभा सीट से लगातार चार बार विधायक बनने के बाद भी संदीप अग्रवाल को गुरूर छूकर भी नहीं निकला था। वो बेहद सादगी से पब्लिक के बीच घुले मिले रहते थे। हर छोटे बड़े मुद्दे पर पब्लिक के साथ खड़े रहते थे। संदीप ने सियासत में कदम यूथ कांग्रेस के पदाधिकारी के दौर पर नब्बे के दशक से पहले रखा था। उनके अंदर नेतृत्व की गजब क्षमता थी।

यही वजह थी कि वर्ष 1993 में भाजपा ने अपने घोषित उम्मीदवार को बदलकर उन्हें टिकट दिया और संदीप ने भारी मतों के अंतर से सीट जीती थी। विधायक बनने के बाद संदीप अग्रवाल ने जनता के बीच अपनी छवि ऐसी बनाई की उन्हें कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा। अपने पांच साल के कार्यकाल में भारतीय जनता पार्टी के विधायक होने के बाद भी संदीप अग्रवाल ने मुस्लिम वोटरों में अपनी अच्छी पकड़ बनाई।

जब वह उन्होंने 1996 में चुनाव लड़ा तो उनका चुनाव हिंदू-मुस्लिम ने मिलकर लड़ाया। जिसमें उन्हें भाजपा के उम्मीदवार होने के बाद भी 30 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिला और वह दूसरी बार विधायक बने। 2002 में भाजपा के टिकट पर संदीप अग्रवाल ने तीसरी बार जीत दर्ज कराई। इस चुनाव के प्रचार में संदीप अग्रवाल को कई बार मुस्लिम मोहल्लों में सिक्कों से तौला गया।

2007 में संदीप अग्रवाल ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और वह अपनी लोकप्रियता की वजह से चौथी बार विधायक बने। इस चुनाव में भी उन्हे हिंदू-मुस्लिम समेत सभी समाज के वोट मिले थे। इस बीच पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण सपा से उन्हें पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद वह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए। लेकिन, बसपा पार्टी उन्हें रास नहीं आई।

2012 के विधानसभा चुनाव में अपने सियासी करियर की सबसे खराब हार झेलने के बाद संदीप की सक्रियता अचानक कम हो गई। लोगों को लगा ये हार का असर है, लेकिन कुछ दिन बाद ही खबर आई कि संदीप को लंग्स कैंसर है। जिसकी वजह से उन्होंने खुद को सियासी हलचल से दूर कर लिया। इसके बाद देश और विदेश में उनका लंबा इलाज चला और वो कैंसर से जूझते रहे। फिर अचानक 20 जून 2014 को संदीप अग्रवाल ने अपने आवास पर अंतिम सांस ली।

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