बरसाने में हुई चरकुला नृत्य की होली, देखें मनमोहक तस्वीरें

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मथुरा। चरकुला नृत्य ब्रज संस्कृति की अद्भुत कला में शुमार है। 108 दीपों से सजा इस पुरातन कला के बिना ब्रज साहित्य और होली की परिभाषा अधूरी ही रह जाएगी। राधारानी के जन्म से जुड़ी इस अद्भुत परंपरा का ब्रज की माटी ही नहीं बल्कि सात समंदर पार तक वैभव बना हुआ है। चरकुला नृत्य …

मथुरा। चरकुला नृत्य ब्रज संस्कृति की अद्भुत कला में शुमार है। 108 दीपों से सजा इस पुरातन कला के बिना ब्रज साहित्य और होली की परिभाषा अधूरी ही रह जाएगी।

राधारानी के जन्म से जुड़ी इस अद्भुत परंपरा का ब्रज की माटी ही नहीं बल्कि सात समंदर पार तक वैभव बना हुआ है।

चरकुला नृत्य की अनूठी और कलात्मक परंपरा गोवर्धन के गांव मुखराई से जुड़ी है। मुखराई गांव राधारानी की ननिहाल है, उनकी नानी का नाम मुखरा देवी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार पिता वृषभानु और माता कीरत कुमारी का आंगन राधारानी की किलकारियों से गूंज उठा। जब यह समाचार उनकी नानी मुखरा देवी ने सुना तो वह बहुत खुश हुईं। मुखरा देवी ने समीप रखे रथ के पहिये पर 108 दीप रखे और प्रज्वलित कर नाचने लगीं।

ग्रामीण महिलाएं 108 जलते दीपों के साथ प्रतिवर्ष चरकुला नृत्य कर परंपरा का निर्वहन करती हैं। महिलाएं जब नृत्य करती हैं तब हुरियारे लोक गीत गाकर उत्साहित करते है।

1845 में गांव के प्यारेलाल बाबा ने नया रूप दिया। लकड़ी का घेरा, लोहे की थाल एवं लोहे की पत्ती और मिट्टी के 108 दीपक रख 5 मंजिला चरकुला बनाया था। गांव की महिलाएं 108 जलते दीपकों के साथ इस चरकुला को सिर पर रख मदन मोहन जी मन्दिर के निकट नृत्य कर परंपरा का निर्वहन करती हैं।

चरकुला नृत्य को देख लोग हैरानी में रह जाते है कि इतना वजन और दीपों को लेकर बिना हाथों से पकड़े महिला नृत्य कैसे कर सकती है।

चरकुला नृत्य की जापान, इंडोनेशिया, रूस, चीन, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया तक इस अद्भुत कला की चमक बिखेरी हुई है।

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