न्यायालय के फैसले से

न्यायालय के फैसले से

जीएसटी परिषद की सिफारिशों को मानने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें बाध्य नहीं हैं। यह बात गुरुवार को उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली खंडपीठ ने एक बड़े फैसले में कही। न्यायालय ने कहा कि भारत में सहकारी संघीय व्यवस्था है। इसी वजह से जीएसटी परिषद की सिफारिशों का महत्व …

जीएसटी परिषद की सिफारिशों को मानने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें बाध्य नहीं हैं। यह बात गुरुवार को उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली खंडपीठ ने एक बड़े फैसले में कही। न्यायालय ने कहा कि भारत में सहकारी संघीय व्यवस्था है। इसी वजह से जीएसटी परिषद की सिफारिशों का महत्व बस प्रेरित करने का है। भारत में केंद्र और राज्य दोनों के पास जीएसटी से संबंधित कानून बनाने का अधिकार है। न्यायालय के फैसले को परिषद के लिए एक झटके के रुप में देखा जा रहा है।

इससे राज्यों की असहमति के स्वर भी तेज हो सकते हैं। साथ ही इससे परिषद के भीतर आम राय बनाने पर ज्यादा जोर देने की जरूरत पड़ेगी। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे गैर भाजपा शासित राज्यों के स्वर को आगे बढ़ाया है, जो हाल के दिनों में परिषद में मामलों को प्रबंधित करने के तरीके को लेकर मुखर रूप से आलोचना कर रहे थे। इसके पहले जीएसटी परिषद में आम सहमति न बन पाने पर पश्चिम बंगाल ने लगातार परिषद के भीतर व बाहर सवाल उठाए थे। पश्चिम बंगाल के पूर्व वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा कि फैसले की भावना सहयोगी और संघीय ढांचे के मुताबिक है। गौरतलब है कि सहकारी संघवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसमें केंद्र और राज्य एक संबंध स्थापित करते हुए एक दूसरे के सहयोग से अपनी समस्याओं का समाधान करते है।

अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 246 ए और 279 के तहत प्रावधान इंगित करते हैं कि राज्यों और केंद्र के पास कराधान के मामलों पर कानून बनाने की समान शक्तियां हैं और वे एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकते हैं। खंडपीठ ने कहा कि प्रावधान प्रतिस्पर्धी संघवाद को उजागर करते हैं। उधर’ राजस्व सचिव तरुण बजाज का कहना है कि जीएसटी परिषद के फैसलों को लागू करने पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से ‘एक राष्ट्र-एक कर व्यवस्था में बदलाव की संभावना नहीं है।

यानी निर्णय ने जीएसटी व्यवस्था के लिए अनिश्चितता नहीं बढ़ाई है। व्यवस्था इस तरह बनी है कि सहमति बनायी जा सके। उन्होंने कहा कि यह फैसला केवल मौजूदा कानून का दोहराव है, जो राज्यों को कराधान पर परिषद की सिफारिश को स्वीकार करने या खारिज करने का अधिकार देता है। जबकि इस शक्ति का इस्तेमाल पिछले पांच साल में किसी ने भी नहीं किया। ऐसे मे अगर कोई राज्य जीएसटी परिषद की सिफारिश को स्वीकार नहीं करने का फैसला करता है तो समस्याएं और बढ़ सकती हैं। इसलिए परिषद को एक व्यावहारिक समाधान प्राप्त करने के लिए सामंजस्यपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए।

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