संसद में हंगामा
संसद में दिल्ली हिंसा पर हंगामा करने की जिद पर अड़े विपक्ष के रवैये के चलते पिछले तीन दिन से कार्यवाही नहीं हो पा रही है। हंगामे के चलते लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कांग्रेस के सात सांसदों को पूरे सत्र के लिए सदन की कार्यवाही से निलंबित कर दिया है। गुरुवार को भी हालात …
संसद में दिल्ली हिंसा पर हंगामा करने की जिद पर अड़े विपक्ष के रवैये के चलते पिछले तीन दिन से कार्यवाही नहीं हो पा रही है। हंगामे के चलते लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कांग्रेस के सात सांसदों को पूरे सत्र के लिए सदन की कार्यवाही से निलंबित कर दिया है। गुरुवार को भी हालात असामान्य रहे और राज्यसभा में उपराष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू को यहां तक कहना पड़ गया कि यह संसद है बाजार नहीं है।
जाहिर है जनता द्वारा चुनकर लोकतंत्र के मंदिर में भेजे गए सदस्यों के चलते अगर कार्यवाही नहीं चल पा रही है तो यह विषय निराशाजनक ही कहा जाएगा। लोकसभा, राज्यसभा की कार्यवाही पर करोड़ों रुपयों का खर्च तो एक विषय है ही, बड़ा मुद्दा यह है कि सदन की गरिमा को तो सदस्य कम से कम बनाए रखें। दरअसल दिल्ली हिंसा के बाद से ही यह तय था कि संसद की कार्यवाही शुरू होने के बाद विपक्ष इस मुद्दे पर चर्चा की मांग जरूर रखेगा। ऐसा हुआ भी और सोमवार को जब लोकसभा की कार्यवाही शुरू हुई तो विपक्षी दलों ने इसी मांग को सदन में रख दिया। मगर लोकसभा अध्यक्ष ने होली के बाद दिल्ली हिंसा पर चर्चा की बात कही। इसी बात पर विपक्ष हंगामा कर रहा है।
अफसोस इस बात का है कि दिल्ली की हिंसा ने पहले पूरे देश को झकझोरा, तमाम बेकसूरों की जान गई और अब भी इस मामले में राजनीति रुक नहीं रही है। इसी राजनीति के चलते कई बेकसूरों की जान गई, मगर हमारे नेताओं को क्या इससे कोई फर्क पड़ता है। आखिर इस मामले में संसद में हंगामे की स्थिति क्यों बनी हुई है? सरकार को इस संवेदनशील मुद्दे पर विपक्ष की मांग को ध्यान रख सदन में चर्चा कराने में आखिर क्या दिक्कत है, यह समझ से परे है। फिर विपक्ष को भी यह बात समझनी होगी कि लोकसभा अध्यक्ष ने अगर होली बाद चर्चा का आश्वासन दिया है तो उस पर अमल होगा ही। सरकार और विपक्ष के बीच इस खींचतान से अगर किसी का नुकसान हो रहा है तो वह सदन की गरिमा और देश का।
इससे पहले भी कई बार लोकसभा, राज्यसभा में कार्यवाही से ज्यादा लोगों ने हमारे द्वारा भेजे गए माननीयों का हंगामा ही ज्यादा देखा है। सरकार की योजनाओं या उसके किसी निर्णय का किसी आधार पर अगर विपक्ष विरोध करता है तो सरकार उसे समझे, मगर पक्ष-विपक्ष की इस खींचतान का केंद्र कम से कम संसद को तो नहीं बनाएं। सदन देश की जनता से जुड़े मुद्दे उठाने की जगह है, हंगामा करने की नहीं। पिछले तीन दिनों से जो गतिरोध सदन में चल रहा है, सरकार और विपक्ष उसे सुलझाकर सदन की गरिमा का ध्यान रखे। यह देशहित में जरूरी है, अन्यथा संसद की छवि नेताओं के हो-हल्ला करने के स्थान की ही बन जाएगी, जो कि काफी हद तक बन भी चुकी है।
