अयोध्या: राम मंदिर के नींव को वज्र बना रही हनुमान के क्षेत्र की माटी

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Published By Deepak Mishra
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अयोध्या। आराध्य का बहुप्रतीक्षित मंदिर बन रहा हो और उसकी नींव को बज्र बनाने में भला हनुमान कैसे पीछे रहते हैं। विशेषज्ञ 1000 साल से ज्यादा तक मजबूती का लक्ष्य लेकर शोध में जुटे थे तो संकट मोचन हनुमान ने उनको अपने क्षेत्र की माटी उपलब्ध कराई। कर्नाटक के ग्रेनाइट से फाउंडेशन को आल प्रूफ बनाने में मदद मिली। आज बज्र ऐसी फाउंडेशन बनकर तैयार है और इसी पर भव्य राम मंदिर का निर्माण चल रहा है।

त्रेता युग में बजरंगबली ने बनवास के लिए निकले श्रीराम के लंका विजय तक के अभियान को परवान चढ़ाया। लंका विजय कर राम वापस लौटे तो हनुमान भी आकर यहीं बस गये। पौराणिक मान्यता है कि हनुमान आज भी राम की सेवा में जुटे हैं। सुप्रीम फैसले के बाद ट्रस्ट के सामने समस्या राम मंदिर को हजारों साल तक अक्षण बनाए रखने की आई तो देशभर के संस्थानों और विशेषज्ञों को लगाया गया। तमाम तरह की योजनाएं बनी और शोध शुरू हुआ।

परिसर में जमीन के नीचे पिलर डाले गये और परीक्षण हुआ, लेकिन सफलता नहीं मिली। मामला आराध्य के मंदिर निर्माण का था तो एक बार फिर हनुमान संकटमोचक की भूमिका में नजर आए। हनुमान के क्षेत्र किष्किंधा पर्वत की माटी ने विशेषज्ञों की समस्या हल कर दी। 

सबसे कठोर मानी जाती है कर्नाटक की ग्रेनाइट
भारत सरकार खान मंत्रालय के भारतीय खान ब्यूरो के मुताबिक विश्व में कुल 300 प्रकार के ग्रेनाइट है, जिनमें देश में 200 प्रकार के पाए जाते हैं। देश में ग्रेनाइट को सबसे कठोर पत्थर माना जाता है। कर्नाटक की ग्रेनाइट चट्टाने ढाई से साढ़े तीन लाख वर्ष पुरानी आंकी जाती है।  परीक्षण के निष्कर्ष से पता चला की यह ग्रेनाइट ऑल प्रूफ है। इस पर भूकंप, ताप, पानी और मौसम का असर नहीं पड़ता। निर्माण की देखरेख में लगाए गए स्ट्रक्चरल इंजीनियर सहस्त्र भोजनी का कहना है कि कर्नाटक का ग्रेनाइट सभी मानकों पर खरा है। इस ग्रेनाइट से बना फाउंडेशन 1000 साल ही नहीं उससे ज्यादा सालों तक इसी तरह टिकाऊ बना रहेगा। 

सैकड़ों वर्षों से होता रहा है इस्तेमाल
निर्माण की मजबूती के लिए कर्नाटक के ग्रेनाइट का प्राचीन समय में बड़े मंदिरों में बतौर पिलर तथा बीम इसका इस्तेमाल होता रहा है। भूकंप,अग्नि व जल रोधी होने के चलते यह ग्रेनाईट प्राचीन वास्तुकला में महत्वपूर्ण था। साकेत कॉलेज में भूगोल विभाग के रीडर डॉ उदय प्रताप सिंह का कहना है कि आज भी ग्रेनाइट का इस्तेमाल मजबूती के साथ-साथ खूबसूरती के लिए होता है।

इसी ग्रेनाईट पत्थर से बनी देश-विदेश की तमाम सदियों पुरानी मूर्तियां आज भी जस की तस है। दक्षिण के राज्यों में स्थापित तमाम मंदिर प्राचीन वास्तुशिल्प के अप्रतिम उदाहरण है। आर्चियन प्रक्षेत्र की कुछ ग्रेनाइट चट्टानें तो चार से साढ़े चार लाख वर्ष पुरानी आंकी जाती हैं। उन्होंने बताया कि राम मंदिर फाउंडेशन के लिए कर्नाटक के चिकबलपुर जिले स्थित खानों से ग्रेनाइट मंगाया गया है इसके लिए वहां की चार कंपनियों के अनुबंध हुआ था।

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