बरेली: कुल की रस्म के साथ हुआ उर्स-ए-आले रसूल का समापन, सामाजिक बुराइयों के खात्मे की हुई दुआ

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Published By Vishal Singh
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 सूफी संतों ने दूसरे धर्मों की भावनाओं का हमेशा रखा ख्याल

77 वें उर्स-ए-आले रसूल का सोमवार को कुल की रस्म के साथ समापन हो गया। कुल के दौरान अकीदतमंदों का सैलाब उमड़ा और लोगों ने दुआ के लिए हाथ उठाए।

बरेली, अमृत विचार 77 वें उर्स-ए-आले रसूल का सोमवार को कुल की रस्म के साथ समापन हो गया। कुल के दौरान अकीदतमंदों का सैलाब उमड़ा और लोगों ने दुआ के लिए हाथ उठाए। समाज से बुराइयों के खात्मे व देश को मजबूत करने की दुआ बदरे तरीकत मौलाना सैयद असलम मियां वामिकी ने की। दिन भर खानकाह पर आने वाले अकीदतमंदों का सिलसिला जारी रहा। ठीक 1 बजे कुल की रस्म अदा की गई। जिसमें सज्जादानशीन ने शिजरा पढ़ा व दुआ की। फनाकरों ने कलाम पेश किए। उर्स में दरगाह मखदूम सबिर पाक (कलियर शरीफ) के सज्जादा नशीन यावर मियां साबरी ने खास तौर से शिरकत की।

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मीडिया प्रभारी जावेद कुरैशी ने बताया कि दरगाह आले रसूल खानकाहे वामिकिया निशातिया में तीसरे दिन कुल की शुरुआत सुबह हाफिज मुजाहिद वमिकी ने कुरान की तिलावत से की। इस के बाद कमाले निशात वमिकी, जीशान वामिकी ने नात व मनकबत का नजराना पेश किया। बदरे तरीकत मौलाना सैयद असलम मियां वामिकी ने जायरीन को नसीहत करते हुए कहा पैगंबरे इस्लाम के बताए हुए रास्ते पर अमल करें।

खुसूसी खिताब में डा. महमूद हुसैन प्रोफेसर बरेली कॉलेज ने कहा कि सूफी संतों ने खानकाहें इसलिए कायम कीं, ताकि जात-पात, ऊंच-नीच, दीन, धर्म, रंग, काला-गोरा, अमीर- गरीब आदि का भेद न रहे। ककराला से आए मुख्य अतिथि मुफ्ती फईम सकलैनी अजहरी ने तकरीर में कहा कि सूफियों ने दूसरे धर्म की भावनाओं का ख्याल रखते हुए खानकाहों में मांस पकाने पर रोक लगा दी। उर्स के सभी कार्यक्रम वामिकिया एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी के बैनर तले हुए।

जफर बेग, हाफिज अलाउद्दीन, फरहान चिश्ती, उस्मान चमन, सैयद चांद मियां, मेराज साबरी, कारी यासीन, मुस्तजब मलिक, आरिफ मलिक, मासूम वामिकी, सफी वामिकी, हाजी मुख्तियार प्रधान, शौकत वामिकी, कबीर वामिकी, जमीर अहमद वामिकी, सरफराज वामिकी, सैयद कासिम अली, हाजी चांद बाबू, अकरम खान वामिकी, कमाले निशात वामिकी आदि का सहयोग रहा।

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