अयोध्या: साहित्य साधक का अवसान, नहीं रहे डॉ. स्वामी नाथ

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Published By Deepak Mishra
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अयोध्या, अमृत विचार। मंगलवार को एक और साहित्य साधक का अवसान हो गया। साकेत महाविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष 85 वर्षीय डॉ. स्वामी नाथ पांडेय का दोपहर निधन हो गया। संस्कृत के साथ अंग्रेजी, हिंदी और बांग्ला पर समान पकड़ रखने वाले डॉ. पांडेय मूल रूप से बलिया जनपद के कोप गांव के निवासी थे और यहां कनीगंज स्थित आनंद बाग में रहकर साहित्य साधना में रत थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है।

सादगी के पर्याय, बहुविज्ञ, भाषाविद् व समालोचक डॉ. पांडेय ने इंटर के बाद काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक किया था। जीविका की तलाश में कोलकाता चले गए। वहां संस्कृत में एमए करने के बाद एक दशक तक जाधवपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन के साथ पीएचडी की उपाधि हासिल की फिर साकेत महाविद्यालय में तीन दशक अध्यापन किया। लगभग दो दशक पूर्व सेवानिवृत्त अविवाहित पांडेय भतीजे ओंकारनाथ के साथ रहते थे। वर्ष 1985 में गुमनामी बाबा उर्फ नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन के बाद उनके कमरे से मिले बंगाली साहित्य व पत्रों का हिंदी में अनुवाद किया।

साहित्य साधक संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. रामानंद शुक्ल के मुताबिक उन्होंने संस्कृत में हनुमदबाहुकम, तुलसीसुधा बिंदुशतकम व दोहावली, हिंदी में झांवां, खेल, पथहारा, अजायबघर, जीजाजी, एक मरे हुए कवि की पीठ पर, बाल्मीकि-आश्रम और तमसा, देशी-विदेशी मुहावरे, नवाब साहब, भारतेन्दु युग और हिंदी पत्रकारिता तथा अंग्रेजी में गोस्वामी तुलसीदास का जीवन एवं कृत्य तथा ग्रीक एवं संस्कृत साहित्य में तुलनात्मक अध्ययन आदि का लेखन किया। विभिन्न भाषाओं में इनकी व्यंग्य, काव्य, समालोचना आदि की 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सुबह हुई न हुई डॉ. पांडेय की अंतिम काव्य कृति है।

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