बरेली: झील के पानी में हैवी मेटल्स पक्षियों की मौत की वजह

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Published By Om Parkash chaubey
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ललितपुर वन विभाग ने आईवीआरआई के कैडरेड विभाग को भेजे थे मृत पक्षियों के शव, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हैवी मेटल्स और लो पेथोजेनिक एवियन इन्फ्लुएंजा से हुई मौत 

बरेली, अमृत विचार : आईवीआरआई की एक रिपोर्ट से झीलों के पानी की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़ा हो गया है। दरअसल ललितपुर में झील के किनारे मृत पाए गए कई पक्षियों की मौत की वजह लेड, कैडमियम जैसे हैवी मेटल्स पाया गया है। संदेह जताया जा रहा है कि ये हैवी मेटल्स झील के पानी में थे जो उनके जिस्म में पहुंचने से उनकी मौत हो गई। सवाल उठ रहा है कि प्राकृतिक स्त्रोत से झील में आया पानी आखिर कैसे इतना प्रदूषित हुआ।

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ललितपुर वन विभाग की ओर से सप्ताह भर पहले आईवीआरआई के कैडरेड विभाग में छह जंगली पक्षियों के पोस्टमार्टम के लिए भेजे गए थे। वन विभाग की ओर से बताया गया था कि ललितपुर में झील के किनारे ये पक्षी मृत पाएं गए। कैडरेड के वैज्ञानिकों की ओर से जांच पाया गया कि ये पक्षी प्रवासी है जो प्रवास के दौरान ललितपुर पहुंचे थे।

मृत पक्षियों के पोस्टमार्टम के दौरान प्रारंभिक जांच के लिए वैज्ञानिकों ने रानीखेत डिसीज (न्यू कैसल डिसीज), एवियन इन्फ्लुएंजा और टॉक्सिसिटी की जांच की गई। एवियन इन्फ्लुएंजा के दो वेरिएंट की जांच की गई, जिसमें हाई पैथोजेनिक एवियन इन्फ्लुएंजा की रिपोर्ट निगेटिव और लो पैथोजेनिक एवियन इन्फ्लुएंजा की रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई।

रानीखेत डिसीज निगेटिव और टॉक्सिसिटी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके साथ पक्षियों की आंत में कोएनोटीनिया नामक पैरासाइट भी पाया गया। विशेषज्ञों के अनुसार लो पैथोजेनिक एवियन इन्फ्लुएंजा और टॉक्सिसिटी की जांच में हेवी मेटल्स की मात्रा अधिक पाई गई। इसी कारण शरीर के वाइटल अंगों ने काम करना बंद कर दिया और पक्षियों की मौत हो गई।

लो पैथोजेनिक एवियन इन्फ्लुएंजा से होती है धीमी मौत: कैडरेड के संयुक्त निदेशक डा. केपी सिंह के मुताबिक लो पैथोजेनिक एवियन इन्फ्लुएंजा से पक्षियों की मृत्यु धीरे-धीरे होती है। यह इन्फ्लुएंजा पक्षियों की रोग प्रतिरोधिक क्षमता कम कर देता है, जिससे उनका वजन तेजी से गिरना शुरु हो जाता है।

लेड, कैडमियम, आरसेनिक जैसे हेवी मेटल्स पक्षियों के लिवर, हार्ट, किडनी और ब्रेन को डैमेज कर देते हैं। इसकी वजह जल प्रदूषण है जिसे रोका जाना चाहिए। नदियों, तालाबों और वेटलैंड में समय-समय पर क्लिनिकल ट्रीटमेंट भी जरूरी है।

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