बरेली: आरक्षण को लेकर आजाद समाज पार्टी ने साधा BJP पर निशाना, कहा- मुखौटे की राजनीति करे बंद

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Published By Vikas Babu
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बरेली, अमृत विचार। लगातार बहुजन समाज अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग एंव धार्मिक अल्पसख्यक के साथ सरकार भेदभाव कर रही है। जिसको लेकर आज आजाद समाज पार्टी ने सरकार पर निशाना साधते हुए राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन जिला अधिकारी को सौंपा। 

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इस दौरान आजाद समाज पार्टी के पदाधिकारियों ने बताया कि बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने अन्य पिछड़ा वर्ग के उत्थान के लिए संविधान के अनुच्छेद 340 में स्पष्ट प्रावधान किया था। इसी के आधार पर 1953 में काका कलेकर आयोग बना। इसकी रिपोर्ट 1955 में आई, लेकिन इसकी सिफारिशें लागू नहीं हो सकीं। इसके बाद 1978 में बीपी मंडल की अध्यक्षता में पिछड़े वर्ग की पहचान के लिए नए आयोग का गठन किया गया। इस आयोग में अपनी रिपोर्ट 1980 में सौंप दी थी।

लेकिन एक दशक बाद अगस्त 1990 में बीपी सिंह सरकार ने पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लिए इस रिपोर्ट को लागू किया। पिछले तीन दशकों में केंद्र और राज्य सरकार में आधे अधूरे ढंग से ओबीसी आरक्षण दिए जाने के कारण अति पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में न के बराबर भागीदारी प्राप्त हुई है। 

देश में 55 फीसदी के करीब ओबीसी समाज है लेकिन केवल 27 फीसदी आरक्षण होने और इसका भी ठीक से अनुपालन नहीं होने के कारण छोटी संख्या बाली अति पिछड़ी जातियां तेली, कुम्हार, पाल, नाई, बुझी, कहार, कश्यप, धीमर, बढ़ई, राजभर, तमोली, भाट, हलवाई, दर्जी, विन्द, भर, चौरसिया, लोनिया, मलहा, केवट आदि सैकड़ों जातियों के साथ न्याय नहीं हुआ है। 1992 में इन्द्रा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी आरक्षण की सीमा निर्धारित कर दी थी।

लेकिन 2019 में मोदी सरकार ने सर्वणों को 10 फीसदी आरक्षण दे दिया। 2022 में सुपरिम कोर्ट ने इसे न्यायसंगत मानते हुए आरक्षण की सीमा 50 फीसदी खत्म कर दी। आज कुल आरक्षण 59.5 फीसदी हो चुका है। इसलिए हमारी मांग है कि यूपी में पीछे छूट गई।

अति पिछड़ी जातियों को ओबीसी के लिए निर्धारित 27 फीसदी आरक्षण के अतिरिक्त 15 फीसदी आरक्षण का प्रावधान सरकार करे। हमारी मांग है कि पिछले सालों में ओबीसी, एससी, एसटी की खाली रह गई सीट पर बैकलॉग भर्तियां करके योगी सरकार अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गों के साथ न्याय करे। भाजपा सरकार मुखौटे की राजनीति बन्द करके प्रदेश के पिछड़े वंचित समाज को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण पूरा करके उनकी भागीदारी सुनिश्चित करे।

आग कहा कि एक तरफ तो सरकारी नौकरियां भाजपा सरकार खत्म करने पर आमादा है दूसरी तरफ जो सरकारी नौकरियां वहाल की जा रही है उनमें आरक्षण का ठीक ढंग से अनुपालन नहीं हो रहा है। विश्वविद्यालय में एनएफएस के जरिये एससी/एसटी और ओबीसी को बहाल किया जा रहा है। यूपी में अनुसूचित जाति की कुल 66 जातियां हैं। आजादी के सात दशक बाद भी गरीबी और बदहाली के कारण इनमें से अधिकांश जातियों के बच्चे उच्च शिक्षा तक नहीं पहुंच सके हैं। यही कारण है कि इन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ ना के बराबर मिला है। इसलिए कमजोर अनुसूचित जातियां लगातार पिछड़ती जा रही हैं।

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