बरेली: पूरे दिन की मेहनत, कमाई 200 रुपए, जान जोखिम में डालकर रामगंगा नदी में खोजते हैं सिक्के

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Published By Vishal Singh
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विकास यादव/बरेली ,अमृत विचार। उम्र मात्र 10 से 12 या तेरह साल लेकिन सिक्के पाने की चाह में दिन भर रामगंगा नदी के घाट पर आस-पास के गांव अंगूरी, टांडा आदि के बच्चों को अक्सर देखा जा सकता है। किसी के हाथ मे रस्सी में बंधी मैग्नेट तो कोई अर्धनग्न रामगंगा पुल से गुजरने वाली ट्रेन और वहां से गुजरने वाले ऐसे राहगीरों का इंतज़ार करते हैं जो गंगा में चढ़ावे के नाम पर सिक्को को फेंकते हैं। 

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जैसे ही किसी के द्वारा गंगा में सिक्के को फेंका जाता है। यह बच्चें उसमें बगैर डूबने व अपनी जान की परवाह किये छलांग लगा देते हैं और फिर सिक्के की तलाश में जुट जाते हैं। कड़ी मेहनत के बाद यह एक सिक्का किसी एक के हाथ लगता है। इसी तरह चाहे कड़ाके की ठंड हो या तपती दुपहरिया या फिर पानी का तेज बहाव इनको रोक नहीं पाता। हर मौसम में बच्चे यहां सिक्के पाने की चाह में लगे रहते हैं। सुबह से लेकर शाम तक कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन कमाई सिर्फ 20 से 30 रुपए। हां ... बड़े बच्चे जरूर 200 से 300 रुपए तक गंगा से निकाल लेते हैं। इस बात से इन बच्चों के परिजन भी अनजान नहीं हैं। वह भी इस बात को जानते है।

पढ़ने की उम्र में स्कूल छोड़ गंगा के घाट पर नजर आते हैं बच्चे
रामगंगा घाट के आसपास के गांव में रहने वाले परिवार का  मुख्य पेशा पालेज आदि है। लेकिन यह पैदावार सीजन के सीजन होती है। तब तक यह लोग मजदूरी व गोताखोरी कर अपने परिवार का गुजारा करते है। इनके बच्चे भी स्कूल में पढ़ने के बदले रामगंगा में एक दो रुपए के सिक्के खोजते हैं।

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गजब के तैराक छोटे से बच्चे
जिस उम्र में बच्चे सही से दौड़ नहीं पाते हैं। उस उम्र में यह छोटे-छोटे बच्चे कमाल के तैराक बन जाते हैं। दिन भर गंगा घाट पर रहकर गहरे पानी में जान जोखिम में डालकर सिक्के खोजते हैं।

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