दुष्कर्म के मामलों में प्रशिक्षित परामर्शदाताओं से नाबालिगों की काउंसलिंग आवश्यक : HC

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि दुष्कर्म जैसे अपराध का प्रभाव क्षणिक न होकर पीड़िता के मन, हृदय, शरीर और आत्मा पर अंकित हो जाता है और बाल कल्याण समिति का उद्देश्य परामर्श द्वारा ऐसी यादों को मिटाने का प्रयास करना है और यह अच्छी तरह से प्रशिक्षित परामर्शदाताओं द्वारा होना चाहिए, जिन्हें उचित मार्गदर्शन के तहत ऐसे नाबालिग पीड़ितों का इलाज करने का अनुभव हो। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकल पीठ ने राजेंद्र अग्रवाल उर्फ बबलू की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। 

याची के विरुद्ध आईपीसी की विभिन्न धाराओं और पोक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के अंतर्गत कोतवाली ललितपुर में मुकदमा दर्ज करवाया गया था। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि पीड़िता की कहानी ना केवल मनगढ़ंत है, बल्कि असंभाव्य भी है। यह कल्पना से परे है कि पीड़िता का उसके पिता द्वारा बार-बार बलात्कार किया गया। इन सबके बावजूद पीड़िता ने कभी भी स्थिति से निकलने का प्रयास नहीं किया और ना ही पुलिस को फोन किया। याची के अधिवक्ता ने आगे कहा कि विभिन्न समन्वय पीठों द्वारा सह-अभियुक्तों को जमानत दे दी गई है। मेडिकल परीक्षण पीड़िता के मामले का समर्थन नहीं करते हैं। याची को मामले में झूठा फंसाया गया है, क्योंकि पीड़िता की मां पारिवारिक संपत्ति में रुचि रखती है। 

इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बाल कल्याण समिति, ललितपुर के चेयरपर्सन को पीड़िता के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी लेने के लिए बुलाया था। उक्त अधिकारी ने न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर कहा कि पीड़िता को मनोवैज्ञानिक परामर्श का विकल्प दिया गया था, हालांकि उसने इनकार कर दिया और साथ ही उसने सहायक व्यक्तियों के लिए भी मना कर दिया। इस पर कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने बाल कल्याण समिति के लिए एक प्रशिक्षण मॉड्यूल शुरू किया है,जो अधिक लाभकारी सिद्ध होगा, अगर इसमें यौन हमले के नाबालिग पीड़ितों से निपटने के लिए अपेक्षित प्रशिक्षण शामिल हो। आगे यह प्रावधान किया गया है कि जब सत्र चल रहा हो तो कोई भी व्यक्ति या मामले से असंबद्ध व्यक्ति कमरे में मौजूद न रहे और केवल उन्हीं व्यक्तियों को उपस्थित रहने की अनुमति दी जाएगी, जिनकी उपस्थिति में बच्चा सहज महसूस करता है। समिति अपनी बैठकें बच्चों के अनुकूल परिसर में आयोजित करेगी जो किसी भी तरह से न्यायालय कक्ष की तरह नहीं दिखाई देगा। 

वर्तमान मामले में आरोपों की गंभीरता को देखते हुए पीड़िता को एक अनुभवी परामर्शदाता द्वारा एक बहुत ही विशेष और प्रभावी परामर्श की आवश्यकता है। वर्तमान मामले में पीड़िता 17 वर्षीय नाबालिग लड़की है। उसके द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी के अनुसार उसने कई वर्षों तक यौन उत्पीड़न का सामना किया। जब वह कक्षा छह की छात्रा थी, तब उसके साथ बलात्कार करने वाला पहला अपराधी उसका पिता (याची) था, जिसने न केवल उसके साथ बार-बार दुष्कर्म किया, बल्कि उसे वेश्यावृत्ति में भी डाल दिया। पीड़िता द्वारा उसके पिता, करीबी रिश्तेदारों, उसके पारिवारिक मित्रों और उसके परिवार के अन्य व्यक्तियों तथा महिलाओं सहित 25 अभियुक्तों का नाम लिया गया है। वह कभी भी अपने साथ हुए अपराधों का पहले खुलासा नहीं कर पाई, क्योंकि बार-बार उसकी मां, छोटे भाई और बहन को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी जा रही थी। 

अंत में कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, उप्र सरकार, लखनऊ को अपने सचिव के माध्यम से बाल कल्याण समिति एवं इसके सदस्यों को अधिक सक्षम बनाने के लिए सभी हितधारकों के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू करके उक्त संदर्भित मुद्दे पर विचार करने का निर्देश देते हुए याची को सशर्त जमानत दे दी।


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