प्रयागराज : यूपी के एडीजी अभियोजन आशुतोष पांडेय की नियुक्ति हुई रद्द

प्रयागराज : यूपी के एडीजी अभियोजन आशुतोष पांडेय की नियुक्ति हुई रद्द

अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के एडीजी अभियोजन आशुतोष पांडेय की नियुक्ति को नियम विरुद्ध और अवैध बताते हुए रद्द कर दिया है। उनकी अभियोजन विभाग के मुखिया के रूप में की गई नियुक्ति सीआरपीसी की धारा 25 ए (2) के विरुद्ध है। अतः उनकी नियुक्ति रद्द करने के बाद कोर्ट ने 6 माह के अंदर अभियोजन विभाग के प्रमुख की नियुक्ति का निर्देश दिया है। सीआरपीसी की धारा 25ए (2) के प्रावधानों के अनुसार अभियोजन निदेशक या उप निदेशक के पद पर नियुक्ति के लिए आवश्यक शर्तें हैं कि अभियोजन निदेशक को 10 वर्ष से कम समय के लिए एक अधिवक्ता के रूप में अभ्यास होना चाहिए और ऐसी नियुक्ति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहमति से की जाए, लेकिन मौजूदा मामले में प्रतिवादी के पास न तो आवश्यक योग्यता है और न ही उसकी नियुक्ति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहमति से की गई है।

इसके अलावा दिनांक 27.11.1980 के कार्यालय ज्ञापन के तहत एडीजी अभियोजन या एडीजी अभियोजन पुलिस के नाम से कोई पद भी नहीं है। सीआरपीसी की धारा 1(2) के अनुसार 25ए के प्रावधान उत्तर प्रदेश राज्य में लागू हैं। यूपी विधानमंडल ने राष्ट्रपति की सहमति से धारा 25ए में संशोधन करने के लिए कोई अन्य कानून भी नहीं बनाया है। राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष साधना शर्मा के मामले में शपथ पत्र दाखिल कर कहा था कि उक्त धारा के प्रावधान पूरे उत्तर प्रदेश में लागू होंगे, लेकिन विपक्षियों द्वारा दिए गए तर्कों में कहा गया है कि सीआरपीसी की धारा 25ए यूपी राज्य में लागू नहीं है, जो पूरी तरह से निराधार है और संसद का अपमान है।

अपर महानिदेशक (अभियोजन) आशुतोष पांडेय ने फरवरी 2023 को अभियोजन निदेशक के रूप में उनके द्वारा की गई पहलों पर प्रकाश डालते हुए एक हलफनामा दाखिल किया था। हलफनामे में उन्होंने बताया कि एडीजी अभियोजन के रूप में पदस्थापित होने के बाद आपराधिक न्याय प्रणाली के सभी हितधारकों के साथ समन्वय और सहयोग कर अभियोजकों के काम में गरिमा और गौरव लाने के लिए एक ठोस और दृढ़ प्रयास किया गया था। ई-अभियोजन पोर्टल, ई-अभियोजन मोबाइल ऐप, ई-ऑफिस एवं ई-एचआरएमएस (मानव संपदा पोर्टल) की शुरुआत कर तथा वेबिनार के माध्यम से प्रशिक्षण एवं शिकायत निवारण के माध्यम से उनके कार्य को कागज रहित बनाने का प्रयास किया गया।

अभियोजकों के बीच नई कार्य संस्कृति, सजा और निपटान पर कोर्ट द्वारा सराहना की गई। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पोक्सो अधिनियम के कार्यान्वयन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के सभागार में दिनांक 10.12.2022 से 11.12.2022 तक भारत के सभी राज्यों के सभी अभियोजन निदेशक और पुलिस अधिकारी मौजूद थे, उन्हें एडीजी अभियोजन, यूपी द्वारा चलाए जा रहे अभियोजन के मॉडल का पालन करने की सलाह दी गई। इसके अलावा यूपी अभियोजन की अनुकरणीय कार्य संस्कृति को देखने और सीखने के लिए भारत के विभिन्न राज्यों के अधिकारी यूपी का दौरा करते हैं। हाल ही में कर्नाटक, मध्य प्रदेश और सिक्किम के अधिकारियों ने यूपी अभियोजन की कार्यप्रणाली की प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करने के लिए लखनऊ का दौरा किया। अभियोजन निदेशक, उड़ीसा ने भी माननीय की सलाह के संदर्भ में यूपी अभियोजन के कामकाज के बारे में जानने के लिए पूछताछ की। तेलंगाना, पंजाब, छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर ने भी यूपी अभियोजन द्वारा अपनाई गई रणनीतियों को जानने में गहरी दिलचस्पी दिखाई।

उच्च पदस्थ सेवारत पुलिस अधिकारी द्वारा हलफनामे में दी गई विस्तृत जानकारी के संदर्भ में कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनके द्वारा सभी अभियोजकों के प्रदर्शन की निगरानी और मूल्यांकन में ऐतिहासिक पहल की गई है, जिसके कारण एक ऐसे वातावरण का निर्माण हुआ, जहां अभियोजकों के दो अलग-अलग समूहों ने एक ही मंच पर एक साथ काम करना शुरू कर दिया। कोर्ट ने आगे कहा कि यह भी सत्य है कि एडीजी के खिलाफ क्वो-वारंटो की प्रकृति में एक आदेश या निर्देश जारी करने के लिए और उनकी नियुक्ति को अवैध मानते हुए किशन कुमार पाठक द्वारा याचिका दाखिल की गई है और जिसमें दिए गए तर्कों के अनुसार एडीजी की नियुक्ति आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 25 ए (2) के तहत प्रदान किए गए वैधानिक प्रावधान के अनुरूप नहीं है। अंत में 15 मार्च 2023 को पक्षकारों के अधिवक्ताओं के तर्कों को सुनकर न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने निर्णय सुरक्षित कर लिया था।

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