बदायूं: केवल 12 रुपये रोज खर्च करके कर सकते हैं गोपालन, जानिए डिटेल्स

बगैर जमीन के पालतू पशुओं के लिए उगाया जा सकता है जल संवर्धन चारा

बदायूं: केवल 12 रुपये रोज खर्च करके कर सकते हैं गोपालन, जानिए डिटेल्स

संजय श्रीवास्तव, बदायूं। करीब दो दशक पहले गांवों में हर घर में पशु पालन होता था। अधिकांश घरों में गोवंश पाले जाते थे। मगर पिछले कुछ सालों में लोग पशु पालन से दूर होते गए। जबकि योगी सरकार गोवंश पालने के लिए प्रतिदिन के हिसाब से 50 रुपये दे रही है। फिर भी लोग गोवंश पालने के बजाय छुटटा छोड़ देते हैं। इसकी वजह भूसा और चारे का महंगा होना बताया जाता है। 

छुटटा गोवंश को रखने के लिए शहर से गांवों तक गोशालाएं खोली गईं। इसके बजट की दिक्कत होने से गोशाला में गायों को सूखा भूसा खिलाया जाता है। मगर प्रतिदिन केवल 12 रुपये खर्च करके एक गोवंश पाला जा सकता है। बदायूं में डीएम मनोज कुमार से मिली प्रेरणा से गोवंश के लिए पौष्टिक सस्ते चारा तैयार करने को बिसौली तहसीलदार अशोक सैनी ने तहसील परिसर में जलीय कृषि प्लांट स्थापित किया है। यहां उगाया जाना ने वाला जल संवर्धन चारा (न्यूट्रिशियस फूडर) गोशाला की गायों को खिलाया जाएगा।

महंगाई की वजह से लोगों ने गोवंश पालना लगभग छोड़ दिया है। कुछ लोग गाय पालते भी हैं तो वे छुटटा छोड़ देते हैं। छुटटा गोवंश किसानों के लिए बड़ी समस्या बने हुए हैं। सड़कों पर घूमने वाले गोवंश राहगीरों पर हमला कर देते हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए योगी सरकार के निर्देश पर छुटटा गोवंश रखने के लिए गोशालाएं खोली गईं। मगर बजट की कमी के चलते गोशाला में गायों को पालना मुश्किल है। 

अधिकांश गोशाला में गायों को सूखा भूसा खिलाया जाता है। चारा ठीक से नहीं मिलने पर गोवंश बीमार हो जाते हैं। कइयों की मौत भी हो चुकी है। गोशालाओं में निरीक्षण के दौरान गायों की दुर्दशा देख बिसौली तहसीलदार अशोक सैनी ने गायों के लिए हरा चारा उगाने के बारे में सोचा। मगर चारा उगाने के लिए जमीन चाहिए। दूसरे खेतों में चारा उगाना भी आसान नहीं है। 

इससे उन्होंने जल संवर्धन (हाइड्रोपोनिक्स) तकनीक से न्यूट्रिशियस चारा उगाने का प्लान बनाया। इस तकनीक से फसलों को बिना जमीन के केवल पानी और पोषक तत्वों से उगाया जाता है। इसे 'जलीय कृषि' कहते हैं। फसल उगाने की इस तकनीक से पर्यावरण भी शुद्ध होगा। इससे काफी कम खर्चे में न्यूट्रिशियस चारा उगाया जा सकता है। इस चारे के खाने से गायों के दूध देने की क्षमता दोगुना हो जाती है। तहसीलदार अशोक सैनी ने प्रयोग के तौर पर इसकी शुरुआत बिसौली तहसील से की है।

न्यूट्रिशन खेती के लिए बिसौली तहसील परिसर में एक ग्रीन रूम बनाया गया। इसमें लोहे का फ्रेम बनाकर ऊपर-नीचे तीन परतों में प्लास्टिक की 88 ट्रे रखी गई हैं। प्रत्येक ट्रे के ऊपर से पानी की पाइप लाइन है, जिससे फब्बारे के जरिये ट्रक में खड़ी फसल में पानी लगाया जा सके। तहसीलदार अशोक सैनी ने बताया कि प्रत्येक ट्रे में भीगे हुए एक-एक किलो गेहूं फैलाकर रखे गए। 

चार दिनों ट्रे में गेहूं की पौध खड़ी है। टंकी में मोटर फिट है, जो टाइमर के हिसाब से हर एक घंटे में एक मिनट के लिए चलती है। तहसीलदार अशोक सैनी ने बताया कि सात दिन में ट्रे के गेहूं चारे के लायक तैयार हो जाएंगे। इस तरह एक किलो गेहूं से 10 किलो न्यूट्रिशियस चारा तैयार हो जाता है। एक गाय औसतन पांच किलो न्यूट्रिशियस चारा खाती है। यानी एक गाय के लिए आधा किलो गेहूं से बना न्यूट्रिशियस चारा पर्याप्त है। इन दिनों एक किलो गेहूं की कीमत 22 रुपये है। इस हिसाब से आधा किलो गेहूं 11 रुपये का हुआ। एक रुपये बिजली खर्च भी मान लें तो 12 रुपये हो जाएगा।

तहसीलदार अशोक सैनी ने बताया कि बिसौली तहसील में उनके द्वारा लगाए प्लांट में प्रतिदिन एक कुंटल न्यूट्रिशियस चारा उगाने की क्षमता है। उन्होंने बताया कि हाइड्रोपोनिक फ़ूडर या जल संवर्धन फसल उगाने की शुरुआत इजराइ में की गई थी। यह चारा खाने से पशुओं को न्यूट्रिशीयन, कैल्शियम, कैलोरी,आयरन जैसे पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। इससे गायों के दूध देने की क्षमता दोगुनी हो जाती है। गोमूत्र भी बढ़ जाता है।

ऐसे कर करें न्यूट्रिशियस चारा
एक किलो गेहूं को सफ़ेद चूना घुले पानी में भिगोकर रखें। इसके बाद पानी से निकाले गए गेहूं पूरी ट्रे में फैला दें। इस ट्रे को ग्रीन रूम में रखें, जिससे सूर्य की धूप सीधी फसल पर न पड़े। एक-एक घंटे के अंतराल से फब्बारे के जरिये पानी का छिड़काव करते रहें। दो दिन में गेहूं या कोई भी बीज अंकुरित हो जागए। तीन-चार दिन में पौध बन जाएगी और सात दिन में चारा तैयार हो जाएगा। चूने का प्रयोग वैक्टटीरिया व अन्य कीटनाशक से बचाव के लिए किया जाता है। प्रति 10 किलो गेहूं भिगोने के लिए 20 ग्राम चूने का प्रयोग किया जाता है।

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