देश के प्रमुख बैंकों का 88,435 करोड़ रुपये विलफुल डिफॉल्टर्स पर बकाया
मुंबई। विलफुल डिफॉल्टर्स पर पंजाब नेशनल बैंक का दिसंबर 2022 तक 38,712 करोड़ का बकाया था। जबकि दिसंबर 2021 में 37,055 करोड़ रुपये बकाया था। इसके अलावा बैंक ऑफ बड़ौदा का जनवरी 2023 तक 38,009 करोड़ और पिछले साल इस अवधि में 24,404 करोड़ बकाया था। वहीं निजी क्षेत्र के बैंक एचडीएफसी का भी फरवरी 2023 तक 11,714 करोड़ बकाया विलफुल डिफॉल्टरों पर था।
सीधे तौर पर देखें तो प्रमुख निजी और सरकारी बैंकों का 88.435 करोड़ रुपये विलफुल डिफॉल्टर्स पर बकाया हैं। जो एक साल पहले 75.294 करोड़ रुपये था। बैंकों और क्रेडिट सूचना कंपनी ट्रांसयूनियन के ताजा आंकड़ों के अनुसार, निजी बैंक एचडीएफसी और बैंक ऑफ बड़ौदा व पंजाब नेशनल बैंक जैसे सरकारी बैंक का इन डिफॉल्टरों पर करोड़ों रुपये का कर्ज है।
विलफुल डिफॉल्टर या इरादतन चूककर्ता उस व्यक्ति या संस्था को कहते हैं जो कर्ज भुगतान की क्षमता होने के बावजूद बैंक का रुपया नहीं देना चाहते हैं। या दूसरे शब्दों में कहें तो कर्ज लेने वाले के पास रुपये तो हैं पर वह वापस करने की मंशा ही नहीं रखता है। एचडीएफसी बैंक के मामले में फरवरी 2023 तक विलफुल डिफॉल्टर्स पर बैंक का 11.714 करोड़ रुपये बकाया था, जो मार्च 2022 में 9.007 करोड़ रुपये था।
ये भी पढ़ें- पंजाब में महंगा हुआ पेट्रोल-डीजल, राज्य सरकार ने बढ़ाया वैट
92.570 करोड़ रुपये का कर्ज
रिजर्व बैंक के दिसंबर 2022 में जारी आकड़ों से पता चलता है कि 31 मार्च 2022 तक शीर्ष 50 विलफुल डिफॉल्टर्स पर बैंकों का 92.570 करोड़ रुपये बकाया है। इस मुद्दे पर संसद में वित्त राज्यमंत्री भागवत कराड ने कहा था कि गीतांजलि जेम्स लिमिटेड ने 7.848 करोड़ का बकाया नहीं चुकाया है और यह कंपनी विलफुल डिफॉल्टरों की सूची में सबसे ऊपर है। एरा इंफ्रा ने 5.879 करोड़ के कर्ज का भी भुगतान नहीं किया है। साथ ही री एग्रो नामक कंपनी ने भी 4.803 करोड़ रुपये का बकाया बैंकों को नहीं चुकाया। यह तीनों कंपनियां सूची में क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
रिजर्व बैंक के मुताबिक, बैंकों या वित्तीय संस्थाएं इन विलफुल डिफॉल्टरों का कोई भी अतिरिक्त सुविधाएं मंजूर नहीं कर सकती हैं। इन कंपनियों को नये उद्यम की शुरूआत करने के लिए आगामी पांच वर्षों के लिए रोक दिया जाता है। इन डिफॉल्टर्स कंपनियों को सेबी रुगुलेशन 2016 के तहत शेयरों के अधिग्रहण और टेकओवर के माध्यम से राशि एकत्र करने पर कैपिटल मार्केट में प्रतिबंधित किया गया है।
धीमी वसूली प्रक्रिया
केंद्रीय बैंक के पूर्व कार्यकारी निदेशक चंदन सिन्हा के अनुसार बैंक के साथ डिफॉल्ट मामले में वसूली का कार्य काफी धीमी है। आईबीसी के जरिये एक तत्काल निवारण की जरूरत है। इससे ऋणदाता कर्ज लेने वाले पर त्वरित कानूनी प्रक्रिया का प्रयोग कर सके।
ये भी पढ़ें- शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया सात पैसे बढ़कर 82.40 पर पहुंचा
समझौता समाधान पर बैंक से बात करें डिफाल्टर- आरबीआई
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार बैंकों और वित्त संस्थाओं से समझौता या तकनीकी राइट-ऑफ के लिए विलफुल डिफॉल्टर्स कंपनियां जा सकती हैं। विलफुल डिफॉल्टर्स के रूप में चयनित किए खातों से संबंधित ऐसे देनदारों के खिलाफ बैंक आपराधिक कार्रवाई से पूर्व समझौता या तकनीकी राइट-ऑफ कर सकते हैं।
केंद्रीय बैंक ने निर्देशित करते हुए बैंकों से कहा कि विलफुल डिफॉल्टर्स या ऐसी कंपनियों को कर्ज देने से पहले बैंक 12 महीने की न्यूनतम अवधि निर्धारित कर लें। ऐसी कंपनियां समझौते के 12 महीने बाद नया ऋण बैंकों से ले सकती हैं। कृषि ऋण के अलावा अन्य जोखिमों के लिए शीतलन अवधि कम से कम 12 माह की होनी चाहिए।
रिजर्व बैंक ने कहा कि बैंकों और वित्त संस्थान अपने बोर्ड के अनुमोदित नीतियों के संदर्भ में समयसीमा तय करने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं। बकाया भुगतान का उधारकर्ताओं के न चुकाने से बैंकों को काफी नुकसान हुआ, जिसके बाद बैंकों ने सैकड़ों करोड़ रुपये के कई समझौतों के निदान को मंजूरी दी थी।
कानूनी और अन्य प्रकार के खर्चों और परेशानियों से बचने के लिए समझौता, छूट या उसके बिना कर्ज लेने वालों से बैंक बातचीत करता है, इससे यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि राशि की शीघ्र वसूली की जा सके। केंद्रीय बैंक की मंजूरी से विलफुल डिफॉल्टर्स के लिए समझौता निपटान में मुश्किलें आ सकती हैं। इससे और अधिक सार्वजनिक धन की क्षति होने की आशंका बढ़ जाती है।
ये भी पढ़ें- पंजाब नेशनल बैंक के लिए 2023-24 स्वर्णिम वर्ष होगा: एमडी
