रामपुर : गंगा जमुनी तहजीब का प्रतीक है भमरौआ का पातालेश्वर महादेव मंदिर

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Published By Bhawna
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 सन् 1788 में भगवान भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में हुए थे प्रकट, सन् 1822 में नवाब अहमद अली ने मंदिर की रखी थी बुनियाद

गर्भ गृह में स्थित शंकर भगवान।

रामपुर, अमृत विचार। भमरौआ स्थित श्री पातालेश्वर महादेव मंदिर बेहद प्राचीन और एतिहासिक है। यह मंदिर गंगा जमुनी तहजीब का प्रतीक कहा जाता है। सन् 1822 में नवाब अहमद अली ने मंदिर की बुनियाद रखी थी। खास बात यह है, मंदिर के चारो तरफ मुस्लिम आबादी है। यहां मुस्लिम लोग भी मंदिर के दर्शन करने आते हैं। 

पंडित नरेश कुमार शर्मा बताते हैं, सन् 1788 में भगवान भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में साक्षात प्रकट हुए थे। आसपास मुस्लिम आबादी होने के कारण शिवलिंग की पहचान न हो सकी। कई ग्रामीण अनजाने में शिवलिंग को अपने औजारों में धार लगाने में प्रयोग में लेते थे। जिसका दुष्प्रभाव भी लोगों को देखने को मिला। शिवलिंग की जानकारी जब तत्कालीन नवाब साहब अहमद अली को हुई तो सन् 1822 में मंदिर की बुनियाद रखवाई। इसके साथ ही मंदिर को कई एकड़ जमीन दान की। आसपास मुस्लिम आबादी होने के कारण कोई ब्राह्मण नहीं था।

 चमरौआ विकासखंड के गांव मझरा मोबिनपुर से पंडित दयाल दास को बुलाकर मंदिर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पंडित नरेश कुमार शर्मा बताते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी उनके पूर्वज पातालेश्वर महादेव मंदिर की देखरेख करते चले आ रहे हैं। बताते हैं कि प्रत्येक सोमवार महादेव के दर्शन करने के लिए सैकड़ों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। वहीं सावन के सोमवार कई लाख श्रद्धालु यहां जल चढ़ाते हैं।

151 फिट पर लहराएगी महादेव मंदिर की ध्वजा
पंडित नरेश कुमार शर्मा बताते हैं कि वर्ष 2010 से मंदिर का जीर्णाद्धार चल रहा है। मंदिर की फाउंडेशन बन चुकी है। निर्माणकार्य अभी चल रहा है। मंदिर के निर्माण के बाद गर्भ गृह को शिफ्ट किया जाएगा। मंदिर की ध्वजा 151 फिट पर लहराएगी। इसके साथ ही मंदिर में 11 फिट का कलश बनवाया जाएगा।

मंदिर में सभी प्रकार की तैयारियां पूरी कर ली गईं
10 जुलाई को सावन का पहला सोमवार है। मंदिर में सभी प्रकार की तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं। दूर-दराज से आने वाले शिव भक्तों को किसी प्रकारी की कोई दिक्कत नहीं होगी। प्रात: चार बजे से कांवड़ चढ़ना शुरू हो जाती है। जिसके बाद आम जनता को प्रवेश दिया जाता है। - पं. नरेश कुमार शर्मा, महंत

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