यूसीसी का सवाल

Amrit Vichar Network
Published By Vikas Babu
On

संसद के मानसून सत्र में एक महत्वपूर्ण मुद्दा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का हो सकता है जिसका कई विपक्षी दल जोरदार विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस ने इस मुद्दे को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़ा है। यूसीसी लागू करना भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा रहा है।

भाजपा 2014 में सरकार बनने के समय से ही यूसीसी को संसद में कानून बनाने पर जोर दे रही है। 2024 चुनाव आने से पहले इस मुद्दे ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। चुनावों से पहले मुद्दा एक बड़े राजनीतिक विवाद में बदलता दिख रहा है।

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए विरोधियों से सवाल किया कि दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा? प्रधानमंत्री ने जिस तरह से यूसीसी का सवाल उठाया, उससे लग रहा है कि अगले चुनाव में भाजपा इसे अपना राजनीतिक अस्त्र बनाने की रणनीति पर काम कर रही है। वहीं, विपक्ष की कोशिश इस अस्त्र की आक्रामकता को कम करने की है।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने कई निर्णयों में सरकार से यूसीसी को लागू करने का आह्वान किया है। मोहम्मद अहमद ख़ास बनाम शाह बानो बेगम के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला दिया और समुदाय के व्यक्तिगत कानूनों की बजाय देश के कानून दंड प्रक्रिया संहिता को प्राथमिकता दी थी।

गत 14 जून को, विधि आयोग ने सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित हितधारकों से विचार मांगकर यूसीसी पर एक परामर्श प्रक्रिया शुरू की। महत्वपूर्ण है कि सोमवार तक पैनल को करीब 46 लाख सुझाव मिल चुके थे। आयोग आने वाले दिनों में कुछ संगठनों और लोगों को व्यक्तिगत सुनवाई के लिए भी बुला सकता है। 

बता दें इस संहिता की जड़ें 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता में मिलती हैं, जिसे पुर्तगालियों द्वारा लागू किया गया था और बाद में इसे वर्ष 1966 में नए संस्करण के साथ बदल दिया। गोवा में सभी धर्मों के लोगों के लिए विवाह, तलाक, विरासत आदि के संबंध में समान कानून हैं। वर्तमान में गोवा एकमात्र राज्य है जहां समान नागरिक संहिता है।

उत्तराखंड आने वाले दिनों में समान नागरिक संहिता लाने के लिए तैयार है। समझा जा रहा है कि पार्टी उत्तराखंड को यूसीसी की प्रयोगशाला बना रही है। विपक्षी एकता की कवायद में जुटे दल इस मुद्दे पर बंटे नजर आ रहे हैं। वहीं राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे पर सरकार और भाजपा के फैसलों से नजर आ रहा है कि वह सभी पक्षों को साध कर ही आगे बढ़ना चाहती है।