विश्व अंगदान दिवस: अंगदान के लिए पांच सालों में सिर्फ 85 लोग आगे आए
सर्वाधिक नेत्रदान के लिए आते हैं आवेदन, लीवर दान के लिए अब तक किसी ने नहीं किया आवेदन
बरेली, अमृत विचार। किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके मानव अंग आठ लोगों की जिंदगी बचा सकते हैं, मगर इस बारे में कम ही लोग सोचते हैं। यही वजह है कि अंगदान करने वालों की संख्या जिले में बहुत ज्यादा नहीं है, हालांकि धीरे -धीरे लोग जागरूक हो रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार पांच सालों में जिले में 85 लोगों ने अंगदान कर समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन किया है।
सर्वाधिक नेत्र और किडनी का दान किया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार नेत्र की कार्निया अन्य मरीजों के काम आती है, जबकि किडनी आकार पर निर्भर करती है। जिससे किडनी का मैच सामान्यतया रिश्तेदारों से ही होता है। लीवर दान के लिए अभी तक किसी की ओर से आवेदन नहीं किया गया। मेडिकल छात्रों की पढ़ाई के लिए देहदान के लिए भी लोग आगे आ रहे हैं। इसके लिए निर्धारित प्रक्रिया और संबंधित दस्तावेजों के बाद आवेदन स्वीकार किए जाते हैं।
भाई को दर्द में देखा तो दी अपनी किडनी
काशीपुर के ओमप्रकाश सैनी किडनी खराब होने के चलते परेशान थे। हफ्ते तीन बार अस्पतालों में डायलिसिस के लिए आना पड़ता था। भाई को इस दर्द से निजात दिलाने के लिए बहन सुमन ने किडनी दान करने का फैसला लिया। जिसके बाद एसआरएमएस मेडिकल कॉलेज में उनकी किडनी भाई ओमप्रकाश सैनी में ट्रांसप्लांट की गई। वर्तमान में ओमप्रकाश व उनकी बहन सुमन दोनों स्वस्थ हैं।
सत्यभामा ने पति की जान बचाई
शाहजहांपुर निवासी भरत वाजपेयी किडनी की बीमारी के चलते दो वर्ष से डायलिसिस प्रक्रिया से गुजर रहे थे। एसआरएमएस में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा की जानकारी मिलने पर उन्होंने यहां डाॅ.संजय से संपर्क किया। पत्नी सत्यभामा की किडनी उनसे मैच हुई। 12 जून को किड़नी ट्रांसप्लांट की गई। अब दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं।
सरकारी व्यवस्था के तहत नहीं है अंगदान की सुविधा
जिले में सरकारी व्यवस्था के तहत अंगदान की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसके साथ ही अंगदान को लेकर लोगों में जागरूकता का अभाव है। निजी व्यवस्था के तहत भोजीपुरा स्थित मेडिकल कॉलेज में नेत्रदान, अंगदान और देहदान की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इस संबंध में सीएमओ डाॅ. बलवीर सिंह ने बताया कि अंगदान के लिए जिले के लोगों को शिविर के माध्यम से जागरूक किया जाएगा।
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