कानपुर : लो पहुंच गयी भारत की राखी चंदामामा तक

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Published By Virendra Pandey
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महेश शर्मा / अमृत विचार, कानपुर। भारत ने रच दिया इतिहास। चांद पर लैंडिंग कराने वाला चौथा देश बना भारत। चंदा मामा नहीं दूर के। चंद्रयान-3 की दक्षिण ध्रुव पर लैंडिंग की। आज तक दुनिया का कोई भी देश चांद के दक्षिण ध्रुव (साउथ पोल) लैंडिंग नहीं करा सका।  तालियों की गड़गड़ाहट के बीच देश इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह रहा।

रिश्तों की कसौटी पर देखें रक्षाबंधन के पर्व से पूर्व ही पृथ्वी ने चांद को भाई मानकर राखी बांध दी हो। यह ऐतिहासिक उपलब्धि राष्ट्रीय उत्सव में परिवर्तित हो चुकी है। खुशनुमा माहौल में हर भारतीय के चेहरे चांद से खिल उठे। चांद पर पहुंचने वाले अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत भी इस श्रेणी में आ चुका है। चांद अपनी ताकत का एहसास तो पृथ्वी पर पूर्ण सूर्य ग्रहण पर भी देखा जाता है जब चांद से हार जाता है सूरज। पृथ्वी को वह ढक लेता है। अब तो चांद पर जीवन की कल्पना साकार होने का वक्त लगभग आ गया है। 

इस मिशन के जरिए भारत न दुनिया को बता दिया कि उसके पास चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही रोवर को वहां पर चलाने की भी कुव्वत है। इस उपलब्धि से विश्व में भारत की विश्वसनीयता में इजाफा तो होगा ही साथ ही स्पेस टूरिज्म के दौर में व्यावसायिक कारोबार बढ़ाने में सहायता मिलेगी। प्रश्न यह है कि आखिर भारत ने दक्षिण ध्रुव ही लैंडिंग के लिए क्यों चुना? यहां तक कोई देश नहीं पहुंचा। रूस का प्रयास लूना-25 भी विफल रहा। दक्षिण ध्रुव के अधिकतर क्षेत्र में सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती। तापमान भी -200 तक रहता है। यानी बर्फीला मौसम वहां पर पानी होने के संकेत या संदेश दे सकता है। ऐसे में यदि कहा जाए चांद में जीवन की संभावनाएं हो सकती हैं तो यह विस्तार किसी और ग्रह में भी जीवन की संभावना विश्व को बता सकता है जो भारत को दुनिया का मुकुट के रूप में स्थापित कर सकता है। प्रधानमंत्री ने चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के बाद अपने संबोधन में चांद से भी आगे जाने की संभावना जतायी है, यह उपलब्घि उनके सपनों को साकार करेगा।

अब विक्रम लैंडर से प्रज्ञान रोवर के निकलने का इंतजार है जो तकरीबन दो घंटे बाद बाहर आएगा और दोनों एक दूसरे की फोटो व चांद की फोटो भेजना शुरू कर देंगे। धरती से चांद की दूरी 3.84 लाख किलोमीटर दूरी पर है। धूल के गुबार शांत होने पर विक्रम चालू होकर अपना काम करेगा।  रैंप से प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर आएगा। उसके पहिए चांद की मिट्टी पर अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो की छाप छोड़ेंगे।

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