Shardiya Navratri: हाथी पर आएंगी मां, घोड़े पर होगी विदाई, कलश स्थापना के लिए ये है शुभ मुहूर्त, इन बातों का रखें खास ख्याल

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Published By Nitesh Mishra
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कानपुर में नवरात्र कल से शुरू हो रहे।

इसके लिए देवी मां के मंदिरों में तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। देवी मंदिरों में सजावट के साथ दुर्गा पूजा पंडाल भी बनाए जाने लगे।

कानपुर, अमृत विचार। शारदीय नवरात्र रविवार यानी 15 अक्तूबर से प्रारंभ हो रहे हैं। शहर के देवी मंदिरों मंक रंगाई-पुताई के बाद सजावट शुरू हो गई है। प्रमुख मंदिरों में दर्शन के लिए बेरीकेडिंग के साथ अन्य व्यवस्थाएं की जा रही हैं। इस बीच दुर्गा पूजा पंडाल भी लगने शुरू हो गए हैं। इस बार माता का आगमन हाथी की सवारी पर होगा, जिसे सुख-समृद्धि पूर्ण माना गया है, लेकिन माता की विदाई की सवारी घोड़ा है, जो शुभ संकेत नहीं बताया जा रहा है।  

नवरात्र पर घरों में श्रद्धालु कलश स्थापना भी करते हैं। उसके लिए शुभ मुहूर्त भी आचार्यो ने निकाला है। आचार्य पं.मनोज कुमार द्विवेदी ने बताया कि शनिवार रात 11. 26 बजे से प्रतिपदा शुरू होकर रविवार रात 12. 33 बजे तक रहेगी।

शनिवार को शाम 4. 25 बजे से चित्रा नक्षत्र शुरू होगा। यह नक्षत्र रविवार को शाम 6.12 बजे तक रहेगा। यदि चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग हो तो उस समय कलश स्थापना करना निषेध है, लेकिन शास्त्रों में ऐसा निर्णय है कि चित्रा नक्षत्र के तीसरे चरण से चौथे चरण तक कलश स्थापना की जा सकती है। ऐसे में रविवार सुबह 10.24 बजे के बाद से कलश स्थापना की जा सकेगी।  

कलश स्थापना के लिए 46 मिनट का शुभ मुहूर्त  

कलश स्थापना और देवी पूजा प्रात: काल करने का विधान शास्त्रों में है, लेकिन इसमें चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग को वर्जित माना जाता है। हालांकि विशेष परिस्थितियों में जब वैधृति योग और चित्रा नक्षत्र के दो चरण व्यतीत हो चुके हों तो घट स्थापना की जा सकती है। प्रात: काल में चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग के दो-दो चरण संपूर्ण हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में घट स्थापना प्रात:काल की जा सकती है। लेकिन अभिजीत मुहूर्त में घट की स्थापना करना सबसे शुभ माना जाता है। इस बार अभिजीत मुहूर्त पूर्वाह्न 11.31 बजे से लेकर मध्याह्न 12.17 बजे तक रहेगा। 

इन बातों का रखें खास ख्याल

नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना में मिट्टी का घड़ा, चांदी, अष्ट धातु, पीतल का कलश शुभ मुहूर्त में ईशान कोण में स्थापित किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले मिट्टी के कटोरेनुमा पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालें और फिर इसमें जौ डालें फिर एक परत मिट्टी की बिछाएं एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें। इसके बाद इस पर कलश स्थापित कर दें। कलश पर रोली या चंदन से स्वास्तिक जरूर बनाएं। कलश में कलावा बांधे। कलश के नीचे थोड़ा से चावल जरूर डालें और कलश के अंदर सिक्का, सुपारी, पंच पल्लव (आम के पत्ते), सप्तम मृतिका (मिट्टी) डाल दें। मिठाई, प्रसाद आदि कलश के आसपास रखें। सबसे पहले गणेश वंदना करें और फिर देवी का आह्वान और प्रार्थना करें।

 

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