नैनीताल: जल विद्युत कंपनियों की विशेष अपीलें खारिज

नैनीताल: जल विद्युत कंपनियों की विशेष अपीलें खारिज

नैनीताल, अमृत विचार। राज्य सरकार के विद्युत उत्पादन जल कर अधिनियम 2012 को चुनौती देती जल विद्युत उत्पादन कम्पनियों की विशेष याचिका की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ इस अधिनियम को लेकर एकमत नहीं है। 

 मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी ने इस अधिनियम को वैध मानते हुए जल विद्युत कम्पनियों की विशेष अपीलों को खारिज करते हुए जल कर अधिनियम को सही ठहराया है जबकि न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी ने इसे राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर मानते हुए जल विद्युत उत्पादन कंपनियों की विशेष अपील स्वीकार की हैं और एकलपीठ द्वारा 12 फरवरी 2021 को अधिनियम के पक्ष में दिए फैसले को निरस्त कर दिया। खंडपीठ के इस मामले में एकमत न होने पर अब यह मामला सुनवाई के लिये एक अन्य न्यायाधीश के समक्ष भेजा जाएगा।

विद्युत उत्पादन कंपनियों की विशेष अपीलों की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पिछले दिनों फैसला सुरक्षित रख लिया था। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी ने अपनी सेवानिवृत्ति से एक दिन पूर्व मामले में फैसला देते हुए इस अधिनियम को वैध ठहराते कहा कि जल कर की दरें तय करने के लिए अधिनियम की धारा 17 के तहत राज्य को प्रदत्त शक्ति को चुनौती नहीं दी जा सकती।

राज्य सरकार ने संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची III की प्रविष्टि 47 का सहारा लेकर कर लगाने को उचित ठहराने की भी मांग की है और राज्य सरकार उक्त सूची में निर्दिष्ट किसी भी मामले के संबंध में शुल्क लगाने में सक्षम है। मुख्य न्यायधीश का  मानना ​​है कि उक्त अधिनियम भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 11 की प्रविष्टियों 45, 49 और 50 के साथ पठित अनुच्छेद 246 (3) के तहत अपनी विधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए उत्तराखंड राज्य की राज्य विधानमंडल द्वारा अधिनियमित किया गया है। उक्त अधिनियम बिजली उत्पादन के प्रयोजनों के लिए पानी की निकासी पर कर लगाने के लिए एक अधिनियम है और पानी के उपयोगकर्ताओं द्वारा बिजली उत्पादन पर कर नहीं है।

न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी ने माना कि ये अधिनियम  बिजली के उत्पादन पर कर लगाता है जिसके लिए राज्य विधानमंडल सक्षम नहीं है और यह अधिनियम संविधान के दायरे से बाहर है। अधिनियम की धारा 17 राज्य सरकार द्वारा दरें तय करने के लिए शक्तियों का अत्यधिक प्रत्यायोजन करती है। उन्होंने अधिनियम की धारा 17 को शून्य माना है। इन तथ्यों के आधार पर उन्होंने जल विद्युत कम्पनियों की अपीलें स्वीकार करते हुए एकलपीठ के आदेश को खारिज कर दिया है।
यह है मामला

12 फरवरी 2021 को न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ ने राज्य सरकार द्वारा जल उत्पादन पर जल कर लागू करने के अधिनियम को सही ठहराते हुए जल उत्पादन कम्पनियों द्वारा दायर इस अधिनियम को चुनौती देती याचिकाओं को खारिज कर दिया था। एकल पीठ के इस आदेश को हाइड्रोपावर कम्पनियों ने विशेष अपील दायर कर खंडपीठ में चुनौती दी थी।

अधिनियम के अनुसार राज्य बनने के बाद उत्तराखंड सरकार ने राज्य की नदियों में जल विद्युत परियोजनाएं लगाए जाने हेतु विभिन्न कम्पनियों को आमंत्रित किया था और उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश राज्य व जल विद्युत कम्पनियों के मध्य करार हुआ, जिसमें तय हुआ कि कुल उत्पादन की 12 फीसदी बिजली उत्तराखंड को निशुल्क दी जाएगी जबकि शेष बिजली उत्तर प्रदेश को बेची जाएगी लेकिन वर्ष 2012 में उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड वाटर टैक्स ऑन इलैक्ट्रिसिटी जनरेशन एक्ट बनाकर जल विद्युत कम्पनियों पर वायर की क्षमतानुसार 2 से 10 पैसा प्रति यूनिट वाटर टैक्स लगा दिया जिससे इन कम्पनियों में करोड़ों रुपये के देनदारी हो गई जिसे अलकनन्दा पावर प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड, टीएचडीसी, एनएचपीसी, स्वाति पावर प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड, भिलंगना हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, जयप्रकाश पावर वेंचर प्राइवेट लिमिटेड आदि ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

हाईकोर्ट की एकलपीठ ने इनकी याचिकाओ को खारिज करते हुए कहा था कि विधायिका को इस तरह का एक्ट बनाने का अधिकार है। यह टैक्स पानी के उपयोग पर नहीं बल्कि पानी से विद्युत उत्पादन पर है जो संवैधानिक दायरे के भीतर बनाया गया है।