वाराणसी: छठ पूजा का आज तीसरा दिन, खरना परंपरा का पालन करते हुए निर्जला व्रत रखेंगी महिलाएं, 36 घंटे रहेंगी भूखी!

वाराणसी: छठ पूजा का आज तीसरा दिन, खरना परंपरा का पालन करते हुए निर्जला व्रत रखेंगी महिलाएं, 36 घंटे रहेंगी भूखी!

वाराणसी। सूर्य उपासना का महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है। लोकआस्था के पर्व छठ पूजा के तीसरे दिन को खरना कहते हैं। कार्तिक शुक्ल पंचमी पर छठ पूजा के तीसरे दिन रविवार को खरना परंपरा का पालन किया जाएगा। महिलाएं शाम को निर्जला व्रत का संकल्प लेंगी। 

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उसके अगले 36 घंटे तक अन्न-जल नहीं लेना है। शाम को सूर्यास्त के बाद गन्ने के रस से पकी चावल की दूध वाली खीर, चावल का पीठा और घी चुपड़ी रोटी खाएंगी। इसमें नमक या चीनी का इस्तेमाल नहीं होता है। प्रसाद के भोग लगाने की परंपरा को ही लोक भाषा में खरना कहा जाता है। उनके प्रसाद खाने के बाद ही पूरा परिवार और रिश्तेदार भोजन करेंगे। 

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छठ पूजा के तीसरे दिन प्रसाद का भोग लगाने के बाद व्रती महिलाएं लकड़ी के चूल्हे पर ढेकुआ और लड्डू का प्रसाद बनाएंगी। साथ में बाकी परिजन छठ मईया के लोक गीत गाएंगे। आज से हर घर में छठ मईया के गीतों की गूंज होगी। बता दें कि पूरे साफ-सफाई के साथ घर पर गन्ने के रस से खीर बनायी जाती है जिसे परिवार के लोग खाते हैं। 

अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी व्रती महिलाएं

अस्ताचलगामी यानी कि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की शुरुआत होगी। महिलाओं का आधा शरीर पानी में रहेगा। अर्घ्य वाला सूप लेकर पानी में ही 5 बार परिक्रमा करेंगी। हर परिक्रमा पर सूप के ऊपर घर के सभी सदस्य बारी-बारी से दूध और जल छोड़ेंगे और सूर्य भगवान को प्रणाम करेंगे। इसके बाद तीसरे दिन की पूजा पूरी हो जाएगी। व्रती महिलाएं कुछ भी ग्रहण नहीं करेंगी। रात्रि जागरण और गीत-भजन करते-करते फिर आधी रात 2 से 3 बजे तक स्नान ध्यान करेंगी, और घाट की ओर जाने की तैयारी करने लग जाएंगी।

चौथे दिन होगा व्रत का पारण

चौथा दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी यानी 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण कर दिया जाएगा। जहां पर अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ्य दिया था। ठीक उसी जगह पर सभी डलिया, सूप और गन्ना लेकर भोर में इकट्ठा होंगे। यहां जैसे ही सूर्योदय होगा, ठीक शाम की तर्ज पर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। सभी व्रती तथा श्रद्धालु घाट पर मौजूद आम और गरीबों को प्रसाद बांटेंगे। इसके बाद वापस घर आते समय रास्ते में पड़ने पीपल के पेड़, जिसे ब्रह्म बाबा कहते हैं, की पूजा करेंगे। पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध का शरबत और थोड़ा प्रसाद लेकर व्रत का पारण करेंगी। 

तीसरे दिन सजेंगी फलों की डलिया, सूप

कल यानी 19 नवंबर को महिलाएं कई तरह के फलों की डलिया और सूप सजाएंगी। इसमें 6 मुख्य फल तो छठी मईया को काफी प्रिय होते हैं। जैसे कि डाभ नींबू (आम नींबू से थोड़ा बड़ा), केला, श्रीफल (नारियल), सिंघाड़ा, सुथनी, गन्ना। इन्हें अर्घ्य वाले सूप में सजाया जाता है। इसके बाद सेब, शरीफा, नाशपाती, अन्नानास, रसभरी, शरीफा आदि फलों से डलियां भरी जाएंगी।

सूरज ढलने से करीब 3 घंटे पहले महिलाएं घाट की ओर बढ़ने लगेंगी। परिवार के बाकी सदस्य सिर पर फलों की डलिया और अर्घ्य का सूप उठाकर चलेंगे। पगयात्रा के दौरान सूप के ऊपर एक दीया भी हमेशा जलती रहेगी, जिसे घाट पर वेदी तक पहुंचने से पहले बुझना नहीं चाहिए। 

कुछ लोग हाथ में गन्ना लेकर साथ-साथ चलेंगे। कुछ देर वेदी पर पूजा करने के बाद सूरज ढलने से आधा घंटे पहले महिलाएं नदी या तालाब के जल में उतरेंगी। 

नए छठ मईया घाट पर बनीं हजारों वेदियां

वाराणसी में छठ पूजा को लेकर गंगा-वरुणा और तालाबों-कुंडों के घाटों पर तैयारियां अंतिम रूप दिया जा रहा है। वाराणसी में बने नए छठी मईया घाट पर भी हजारों वेदियां बना दी गईं हैं। 

दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, राजघाट, केदारघाट, सामने घाट, गाय घाट और भदैनी घाट पर भी लाखों की संख्या में वेदी बनकर तैयार है। साथ ही प्रशासन ने अस्थाई चेजिंग रूम्स और अतिरिक्त जल पुलिस को तैनात कर दिया है। 

इन घाटों पर ही 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालु आ जाते हैं। इसके साथ ही वरुणा नदी के शास्त्री घाट, फुलवरिया घाट, वहीं, तालाबों में बरेका तालाब, सूरजकुंड, ईश्वरगंगी पोखरा, मच्छोदरी, मैदागिन, रामकटोरा पोखरा आदि जगहों पर भी भारी मात्रा में श्रद्धालु सूरज भगवान को अर्घ्य देने के लिए जुटेंगे।

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