सेना का आधुनिकीकरण
पिछले वर्षों में तकनीकी विकास के कारण संघर्षों और युद्ध की प्रकृति में कई बदलाव आए हैं। बदलती युद्ध शैली और हथियारों के आधुनिकीकरण के चलते युद्ध जटिल स्थिति में जा पहुंचे हैं। भारत की सीमाओं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार सामरिक चुनौतियां मिल रही हैं।
इसी चुनौती के मद्देनजर पिछले दिनों केंद्र सरकार ने 2.23 लाख करोड़ रुपये की रक्षा अधिग्रहण परियोजनाओं को प्रारंभिक मंजूरी दे दी, जिसमें 97 तेजस हलके लड़ाकू विमान और 156 प्रचंड लड़ाकू हेलीकॉप्टरों की खरीद शामिल है, जो सशस्त्र बलों की लड़ाकू क्षमताओं को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने के लिए एक बड़ा कदम है। महत्वपूर्ण है कि कुल खरीद का 98 प्रतिशत घरेलू उद्योगों से प्राप्त किया जाएगा और इस कदम से भारतीय रक्षा उद्योग को आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने में काफी बढ़ावा मिलेगा।
विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं पर निर्भरता भी काफी हद तक कम हो जाएगी। ध्यान रहे हथियारों और गोला-बारूद की कमी को पूरा करने में हमारी सबसे बड़ी बाधा रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों या आयात पर निर्भरता रही है।
ध्यान रहे कारगिल युद्ध के समय जरूरी युद्धक सामग्री व भारी हथियारों के लिए जरूरी कल-पुर्जों को हासिल करने में देश को परेशानी का सामना करना पड़ा था। कई देशों ने संकट काल में मुंह फेर लिया था। लेकिन यहां ध्यान रखना जरूरी है कि रक्षा उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों। ऐसा न हो कि चुनौतीपूर्ण स्थितियों में संकट के अनुरूप गुणवत्ता के हथियार न मिलने पर सेना को असहज व मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़े। अपने साम्राज्यवादी मंसूबों से चीन हमें लगातार परेशान करता रहा है।
हालांकि, भारत ने चीन से लगती सीमा पर संरचनात्मक विकास को महत्ता दी है लेकिन सेना का आधुनिकीकरण भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। आने वाले समय में अंतरिक्ष युद्ध की आशंका को नहीं टाला जा सकता। चीन समेत दुनिया के तमाम मुल्क अंतरिक्ष युद्ध से जुड़े अनुसंधानों पर बड़ी रकम खर्च कर रहे हैं। इस नई चुनौती के अनुरूप भारतीय सेनाओं को ढालने की जरूरत है।
सरकार के गंभीर प्रयास हैं कि ऐसा माहौल बने जिससे देश हथियार उत्पादन के मामलों में आत्मनिर्भर हो सके। हालांकि रक्षा औद्योगिक परिसर के विस्तार के साथ आत्मनिर्भरता पहले से ही एक घोषित नीति है। इससे देश में हथियारों के उत्पादन को गति मिलेगी। देश के रक्षा उद्योग को बड़ा संबल मिलेगा। साथ ही हम हथियारों पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा भी बचा सकते हैं और इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे।
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