बरेली: हजारों नोटिस और करोड़ों का बकाया, महीनों से शिकंजे में फंसे हैं व्यापारी
बरेली, अमृत विचार। सात साल पहले जीएसटी लागू होने के बाद जब व्यापारी उसके प्रावधानों को अस्पष्ट और उलझाऊ बताकर उन्हें स्पष्ट करने की मांग कर रहे थे, तब तो उनकी सुनी नहीं गई लेकिन अब सात हजार से ज्यादा नोटिस जारी कर उन पर करोड़ों का हिसाब निकाल दिया गया है।
इन नोटिसों में उन पर 50 हजार से लेकर 20 लाख तक का बकाया दिखाया गया है। जिन पर छोटा-मोटा बकाया था, उन्होंने तो उसे निपटाकर मुक्ति पा ली लेकिन बड़े बकाया से परेशान व्यापारी महीनों से अफसरों के चक्कर काट रहे हैं। समाधान का रास्ता नहीं निकल पा रहा है तो गंभीर आरोप भी उछलने लगे हैं।
जीएसटी 2017 में लागू हुआ था। व्यापारियों को 2017-18 और 2018-19 में ही रिटर्न दाखिल करने में हुई गड़बड़ियों पर नोटिस भेजे गए हैं। राज्य कर विभाग के मुताबिक ये गड़बड़ियां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित सॉफ्टवेयर ने पकड़ी हैं। पूरे जोन में करीब 44 हजार व्यापारियों के रिटर्न में गड़बड़ियां मिली थीं, जिस पर उन्हें नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया था।
संतोषजनक जवाब मिलने के बाद करीब 37 हजार नोटिस खारिज कर दिए गए, बाकी सात हजार नोटिस में से करीब आधे मामले व्यापारियों की ओर से बकाया राशि जमा कर निपटा दिए गए। इससे विभाग को करीब 19.78 करोड़ रुपये की आय हुई। अब 3471 ऐसे मामले लंबित हैं जिनमें व्यापारियों पर बड़ा बकाया दिखाया गया है।
इन व्यापारियों के लिए ये नोटिस गले की हड्डी बन गए हैं। उनका आरोप है कि राज्य कर विभाग के अफसर न उनकी सुन रहे हैं न उनके मामलों का समाधान करने को तैयार हैं। इनमें 20 लाख तक के बकाया के नोटिस शामिल हैं और इनके बहाने उन पर नाजायज दबाव बनाया जा रहा है।
परेशान व्यापारियों ने की आरोपों की बौछार
1- मैनेज करने का रास्ता दिखा रहे हैं अफसर
शहर के कई व्यापारियों का कहना है कि कई-कई लाख का रिटर्न जमा करने के लिए नोटिस दिया गया है। जीएसटी विभाग में इन नोटिसों को मैनेज कराने का भी बड़ा खेल चल रहा है। कुछ खंडों के अधिकारी व्यापारियों को अपने कर्मचारियों के जरिए कार्यालय बुलाकर नोटिस की रकम के मुताबिक समस्या का निस्तारण कराने की बात कहते हैं। ठेकेदार जीतू ने बताया कि एक तो छह साल नोटिस भेजा गया, दूसरे विभाग में कोई सुन नहीं रहा। हमारे सीए का भी सुझाव है कि विभाग में मैनेज करना ज्यादा बेहतर रहेगा।
2- 95 फीसदी अपंजीकृत ट्रांसपोर्टरों पर कार्रवाई नहीं
ट्रांसपोर्टर आशु अग्रवाल कहते हैं कि उनका ट्रांसपोर्ट जीएसटी में रजिस्टर्ड हैं और सारा कारोबार नंबर एक में हैं। कुछ कमियों की वजह से लाखों बकाया निकाल दिया गया है, दूसरी ओर जिले में 95 फीसदी ट्रांसपोर्टरों का न जीएसटी में रजिस्ट्रेशन है न परिवहन विभाग में। सरकार का खजाना ही भरने का मकसद है तो अफसरों को उन पर भी कार्रवाई करनी चाहिए लेकिन नहीं कर रहे हैं।
3- भाजपा सरकार और व्यापारी संगठनों से भी शिकायत
व्यापारियों का कहना है कि भाजपा को वे लोग अपनी पार्टी समझते हैं लेकिन उसी की सरकार में उन्हें सबसे ज्यादा परेशान किया जा रहा है। वे लोग जीएसटी कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं लेकिन उनका कोई समाधान नहीं हो पा रहा है। व्यापारी संगठन भी उनकी कोई मदद नहीं कर रहे हैं। परेशान व्यापारी संगठनों के साथ जनप्रतिनिधियों से भी शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई आगे आने को तैयार नहीं है।
व्यापारी नेताओं की सफाई...
छह साल बाद रिटर्न मिसमैच पर नोटिस भेजना सीधे तौर पर व्यापारियों का उत्पीड़न करने जैसा है। हमारा संगठन व्यापारियों की इस समस्या पर जीएसटी अफसरों से दो बार मिल चुका है। अब जल्द मुख्यमंत्री के समक्ष भी यह समस्या रखेंगे।- विकास अग्रवाल, जिलाध्यक्ष भारतीय उद्योग व्यापार मंडल
हमारा संगठन राजनीति से जुड़ा नहीं है। पिछले महीने व्यापार मंडल के प्रांतीय अधिवेशन में अध्यक्ष मुकुंद मिश्रा ने खुद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के समक्ष व्यापारियों की इस समस्या को प्रमुखता से रखा था। -राजेंद्र गुप्ता, प्रांतीय महामंत्री, उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल
सरकार मामूली त्रुटि के लिए अनावश्यक परेशान न करे। तमाम व्यापारी जीएसटी कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। अफसरों के पास कोई समाधान नहीं। भागदौड़ से सबसे ज्यादा परेशानी छोटे व्यापारियों को हो रही है।- रामकृष्ण शुक्ला, महानगर अध्यक्ष, व्यापारी सुरक्षा फोरम
व्यापारी परेशान न हों। अगर खंड के अधिकारी नहीं सुन रहे हैं तो वे मुझसे शिकायत करें, समस्या का तत्काल निदान कराया जाएगा। -ओम प्रकाश चौबे, जीएसटी एडिशनल कमिश्नर ग्रेड-1
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