कासगंज: सर्दी के मौसम में रोगों से घिरी आलू-सरसों की फसल, ऐसे करें बचाव...

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Published By Vikas Babu
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जिले में झुलसा रोग का बढ़ने लगा प्रकोप, बढ़ गई किसानों की चिंता

कासगंज, अमृत विचार: मौसम का असर फसलों पर पड़ा रहा है। फसलें प्रभावित हो गई हैं। आलू और सरसों की फसल रोगों से घिर गई है। झुलसा रोग का प्रकोप है। इस बीच विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि सतर्कता के साथ फसलों को बचाया जा सकता है। हल्की सिंचाई और अन्य उपायों से फसलों को झुलसा रोग से बचा सकते हैं।

जिले में गेहूं, सरसों, आलू, मटर आदि रवी की प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं। मोहनपुरा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक समय समय पर मृदा संरक्षण, कृषि एवं पशुपालन के संबंध में दिशा निर्देश देते हैं। इसी क्रम में सस्य वैज्ञानिक डॉ प्रणवीर सिंह ने वर्तमान के मौसम से इस फसलों पर होने वाले प्रभाव के बारे में सलाह दी है।

गेहूं के लिए अनुकूल है मौसम
जनपद में गेहूं का करीब 95 हजार हैक्टेयर रकबा है। गेहूं की फसल के लिए कम तापमान की आवश्यकता होती है, इसलिए वर्तमान का मौसम काफी अनुकूल है। ऐसे मौसम में गेहूं में कल्ले अधिक निकलते हैं जो पौधे को अच्छी वृद्धि देकर बेहतर पैदावार देने में सहायक होते हैं। गेहूं में समय पर सिंचाई अति आवश्यक है।

अधिकतर किसान सही समय पर सिंचाई नहीं करते हैं जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। पहली सिंचाई 20 से 25 दिन पर, दूसरी 40 से 45 दिन, तीसरी 60 से 65 दिनों पर करनी चाहिए। चौथी सिंचाई 80 से 85 दिनों पर, पांचवी 100 से 105 एवं अंत में जब फसल में दाने भर जाएं तब एक हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

सरसों में हो सकता है माहू कीट का खतरा
राई एवं सरसों की फसल फूल आने एवं दाना भरने की अवस्था में नमी की कमी के प्रति बेहद संवेदनशील है। इसलिए बेहतर उपज के लिए समय पर सिंचाई अति आवश्यक है। इस समय घना कोहरा छाया रहता है, ऐसे मौसम में सरसों की फसल पर माहू कीट का प्रकोप होने की संभावना बन जाती है।

इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ पीलापन लिए हरे रंग के होते हैं जो पौधे के कोमल तने, पत्तियों, पुष्पों एवं नई फलियों का रस अवशोषित कर कमजोर कर देते हैं। साथ ही ये कीट पौधे पर मधुस्राव करते हैं जिससे काली फफूंदी उग आती है जो पौधे के प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया को बाधित करती है।

फलतः फसल का उत्पादन 60 से 70 प्रतिशत तक प्रभावित हो सकता है। माहू कीट की रोकथाम के लिए डॉ प्रणवीर सिंह ने तीन उपाय बताए गए हैं। नीम का 50 मिली तेल 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसके अलावा 15 से 20 मिली इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. अथवा क्लोरपायरीफॉस 20 प्रतिशत ई. सी. को 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

आलू में लग सकता है झुलसा रोग
कोहरा एवं पाला आलू की फसल के लिए नुकसानदायक होता है। ऐसी स्थिति में आलू की फसल में झुलसा रोग लगने की संभावना हो जाती है, जिसमें पत्तियां जलने जैसी हो जाती हैं। धीरे धीरे पूरा पौधा समाप्त हो जाता है। यदि समय पर इसकी रोकथाम न हो पाए तो आंशिक या पूरी फसल भी इस रोग की चपेट में आ सकती है।

झुलसा रोग से बचाने के लिए सर्वप्रथम फसल को पाले से बचाना अत्यंत जरूरी है। इसके लिए हल्की बौछार रूपी सिंचाई करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त घुलनशील सल्फर का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें। यदि फसल झुलसा रोगग्रस्त हो चुकी है तो 2 ग्राम मैंकोजेब को 1 लीटर पानी में घोलकर प्रभावित फसल पर छिड़काव करें। पुनः 7 से 10 दिन के अंतराल पर इसी अनुपात में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

मटर को पाले के प्रकोप से बचाएं
जनपद के मोहनपुरा क्षेत्र में मटर बहुतायत में उगाई जाती है। खेतों में मटर की फसल फली से लदी खड़ी है। ऐसी स्थिति में इसे कोहरे एवं विशेषकर पाले से बचाना अति आवश्यक है अन्यथा फली में सफेदी आ जायेगी और दाने ठीक से नहीं भरेंगे जिससे उत्पादन काफी प्रभावित हो सकता है।

मटर को कोहरे एवं पाले के प्रकोप से बचाने के लिए हल्की बौछार वाली सिंचाई करें। साथ ही खेतों की चहारदीवारी पर धुंआ करें। धुंए से खेत के आसपास के तापमान में वृद्धि होगी जिससे कोहरे और पाले का असर फसल पर काफी कम होगा। अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र मोहनपुरा कासगंज में किसी भी कार्य दिवस में संपर्क किया जा सकता है।

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