बरेली: रामजन्मभूमि आंदोलन... वीरांगना बन विमला ने भरा था महिलाओं में जोश, जेल में गुजारे 25 दिन

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Published By Vishal Singh
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परिवार के 13 लोगों को पुलिस ने जेल में डाल दिया, वह भी महिलाओं के साथ जेल गईं

बरेली, अमृत विचार। 90 के दशक में रामजन्म भूमि आंदोलन जोर पकड़ रहा था। उन दिनों महिलाओं का घर से निकलना आसान नहीं था लेकिन राम जन्मभूमि के लिए महिलाएं वीरांगना बन गई थीं। जेल जाने में भी संकाेच नहीं किया। महिलाओं में अलख जगाने का काम किया था विमला शुक्ला ने। उन्होंने न सिर्फ महिलाओं को संगठित किया बल्कि उनके सम्मान और सुरक्षा का भी ध्यान रखा। दुर्गावाहिनी की संयोजिका के रूप में वह जेल गईं तो उनके साथ बच्चे भी थे। उनमें एक बेटा इन दिनों मेरठ में न्यायिक सेवा में है। उस समय प्रदेश भाजपा संगठन में अकेली महिला विमला शुक्ला थीं, जिन्होंने मंदिर आंदोलन में नेतृत्वकर्ता के रूप में काम किया।

वर्ष 2000 में भाजपा की जिलाध्यक्ष रहीं नवाबगंज निवासी विमला शुक्ला राम जन्मभूमि के लिए आंदोलन को याद कर उत्साहित हो उठीं। कहा कि उन दिनों काफी प्रताड़ना भी सही लेकिन इससे उनकी हिम्मत कम नहीं हुई। एक बार पुलिस ने घर पर धावा बोल दिया। दरवाजा तोड़कर उनके पति पूर्व चेयरमैन राजेन्द्र शुक्ला उर्फ मुन्ना पांडेय को ले गई। तभी वायरलेस पर आवाज गूंजी कि मुन्ना को नहीं इनकी पत्नी विमला को पकड़ना है, वही मुखिया हैं। पुलिस दोबारा घर पर आई तब तक वह पुलिस की पकड़ से दूर हो चुकी थीं। तब उनके श्वसुर को पुलिस पकड़ ले गई। बताया कि उनका पूरा परिवार जेल में था लेकिन गांव से जो भी जत्थे आ रहे थे उसका नेतृत्व करते हुए जेल भरो आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और महिलाओं को लेकर भी जेल गईं।

विमला बताती हैं कि उनके परिवार के 13 लोग जेल भेजे गये। दोबारा जेल भरो आंदोलन में पुलिस उन्हें महिलाओं के साथ शाहजहांपुर की बच्चा जेल ले गई। वहां की अव्यवस्थाओं को देखकर कार्यकर्ताओं ने महिलाओं को उतरने नहीं दिया। इसके बाद पुलिस रात में ही उन्हें फिर बरेली जेल लाई। यहां जेलर से कहकर अलग टेंटकी व्यवस्था कराई जिसमें सभी महिलाएं रहीं। बताया कि राम जन्मभूमि के लिए लोगों में जुनून था। कारसेवकों के जत्थे जा रहे थे। उनके ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था की जिम्मेदारी संगठन ने दी, उसे निभाया। 

35 साल पहले किया गया संघर्ष अब फलीभूत हो रहा है। जीवनकाल में राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है तो सुखद अनुभव हो रहा है। कारसेवकों कायकर्ताओं का संघर्ष काम आया। छोटे पुत्र आचार्य अरविंद शुक्ला के साथ आईं विमला शुक्ला ने बताया कि इस आंदोलन में उनका कार्य एक गिलहरी का था। गिलहरी ने लंका में पुल बनाने में जो सहयोग किया वही काम मैंने किया।

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