केजीएमयू : सांस के मरीजों में कारगर है आधुनिक चिकित्सा की यह विधा, जानिये क्या कहते हैं डॉ. सूर्यकांत    

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Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में गुरुवार को पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन एवं पैलिएटिव केयर के विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन श्वसन रोगों के लिए एक आधुनिक चिकित्सा विधा है, जिसके माध्यम से सांस के रोगियों को दवाओं व इन्हेलर्स के अतिरिक्त कैसे उनका जीवन गुणवत्ता पूर्वक बनाया जा सकता है और कैसे उनकी रोज़मर्रा की परेशानियां को कम किया जा सकता है, सिखाया जाता है। साथ ही ऐसे सांस के रोगियों की कार्यक्षमता एवं पोषण को कैसे बढ़ाया जा सकता है, इसके लिए पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन का प्रयोग किया जाता है। 

किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में एक पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन केंद्र बनाया गया है, जिसमें सांस के मरीजों को अस्थमा, सीओपीडी, इंटरस्टीशियल लंग डिजीज या फिर टीबी के संपूर्ण इलाज के बाद भी जिनकी सांस फूलती है या परेशानी रहती है, ऐसे रोगियों को कुछ शारीरिक व्यायाम, पोषण सलाह तथा काउंसलिंग और कुछ व्यायाम के माध्यम से सांस के रोगियों की जीवन की गुणवत्ता और उनकी कार्य करने की क्षमता को बढ़ाने की कोशिश की जाती है। इसमें कुछ योग, व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान की भी सलाह दी जाती है। इस पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन केंद्र में रोगियों को डॉक्टर की सलाह पर पंजीकृत किया जाता है। उनकी काउंसलिंग के बाद उनको पोषण की सलाह दी जाती है। रोगी को प्रारंभ में केंद्र में आना पड़ता है और आवश्यकता अनुसार रोगी को ऑनलाइन सेशन के द्वारा भी प्रशिक्षित किया जाता है। इसी पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन केंद्र के द्वारा आज इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। 

रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष एवं पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन सेंटर के इंचार्ज डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि देश में करीब 10 करोड़ लोग ऐसे हैं जो अस्थमा, सीओपीडी, इंटरस्टीशियल लंग डिजीज या टीबी का पूर्ण उपचार होने के बाद भी जिनकी सांस फूलती रहती है ऐसे रोगियों को दवाओं एवं इन्हेलर से पूरी तरह से आराम नहीं मिल पाता है। इन रोगियों के लिए शोध के द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन की आवश्यकता पड़ती है। इस पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन में सांस के रोगों के विशेषज्ञ, फिजियोथैरेपिस्ट, डाइटिशियन, काउंसलर, सोशल वर्कर आदि की एक पूरी टीम की आवश्यकता होती है जो कि रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में मौजूद है। अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय शोधों के आधार पर यह देखा गया है कि तीन महीने के पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन के प्रयोग से रोगियों को काफी आराम मिल जाता है, साथ ही साथ उनके जीवन की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ. अंकित कुमार, त्रिवेन्दरम् से डॉ. श्रीदेवी वारियर, कोलकता से डॉ. सिरसेन्दु राय, मुम्बई से डॉ.अंकिता तथा पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन सेन्टर केजीएमयू से डॉ. शिवम श्रीवास्तव, दिव्यानी गुप्ता, सुक्रति मिश्रा ने अपने व्याख्यान दिये। 

इस आयोजन में विभाग के चिकित्सक डॉ.आरएएस कुशवाहा, डॉ. राजीव गर्ग, डॉ. अजय कुमार वर्मा, डॉ. आनन्द श्रीवास्तव, डॉ. दर्शन बजाज, डॉ. ज्योति बाजपेयी, डॉ. अंकित कुमार एवं विभाग के सभी रेजिडेन्ट्स, पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन सेन्टर की टीम के फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. शिवम श्रीवास्तव, डाइटिशियन दिव्यानी गुप्ता और सोशल वर्कर कम-काउंसलर सुक्रति मिश्रा और डेटा मैनेजर पवन कुमार पाण्डेय उपस्थित रहे। इसके साथ ही विभाग के शोधार्थी और प्लास्टिक सर्जरी विभाग के फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. एके चौधरी भी उपस्थित रहे। इस संगोष्ठी में लगभग 400 से अधिक लोगों ने ऑनलाइन प्रतिभाग किया।

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