UP News: सिंथेटिक ड्रग की गिरफ्त में प्रदेश, सालान सौ करोड़ से ज्यादा का कारोबार, एनसीबी कर रही जांच
रेव पार्टियों के बढते चलने के साथ नशे की दलदल में फस रहा युवा वर्ग, अंतर्राष्ट्रीय बाजार से जुड़े हैं लखनऊ के तस्करों के तार, एनसीबी कर रही जांच
सुनील कुमार मिश्र/लखनऊ, अमृत विचार। लखनऊ सहित प्रदेश के प्रमुख शहरों में सिंथेटिक ड्रग का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। नोरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में सिंथेटिक दवाओं का सालान करीब सौ करोड़ से अधिक का करोबार हो रहा है। लेकिन वैध दवाओं की शक्ल में बिक रहा यह नशा मुश्किल से 10 फीसदी ही पकड़ में आ रहा है। शुक्रवार को एसटीएफ ने ट्रॉमाडोल टैबलेट्स के साथ तीन युवकों को गिरफ्तार किया। इनसे पूछताछ में सामने आया कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दवाओं की बिक्री कर रहे थे। यह इनपुट मिलने के बाद एनसीबी की टीम इस सिंडिकेट का पता लगाने में जुट गई है।
नॉरेकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की जांच में सामने आया कि रेव पार्टियों के बढ़ते चलन ने सिंथेटिक ड्रग के कारोबार को बढ़ा दिया है। नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम जैसे शहरों के बाद लखनऊ में भी यह तेजी से पैर पसार रहा है। गांजा, चरस, अफीम जैसे प्राकृतिक मादक पदार्थों से तैयार होने वाले नशे के मुकाबले रसायनिक तत्वों से बनाए जा रहे सिंथेटिक ड्रग आसानी से सुलभ और ज्यादा उत्तेजक हैं। इसलिए युवा जल्दी इसकी लत पकड़कर नशे के दलदल में फसते जा रहे हैं।
गृह विभाग की सख्ती से बदला तरीका
नॉरकोटिक कंट्रोल ब्यूरो के क्षेत्रीय निदेशक प्रशांत श्रीवास्तव ने बताया कि मादक पदार्थों की रोकथाम के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय बेहद सख्त है। इसकी ट्रैफिकिंग, मॉनिटरिंग और सीजर के लिए सभी प्रदेश में एंटी नॉरकोटिक्स फोर्स का भी गठन कर दिया गया है। इससे बड़े पैमाने पर प्रदेश में आने वाला गांजा, चरस, अफीम और इससे जुड़े नशीले उत्पादों की तस्करी कम हुई है। जिसकी वजह से अब सिंथेटिक ड्रग का चलन बढ़ता जा रहा है। खुले बाजार में बिकने वाली साइक्रेटिक दवाओं के रुप में यह ड्रग बिक रहा है। इन दवाओं की पहचान के बावजूद इनमें साइको एक्टिव पदार्थ की मात्रा तत्काल नही मापी जा सकती इस वजह से इसपर पूरी तरह नकेल नही कस पा रहा है।
मानसिक रोग की दवाएं बन रही मुखौटा
प्रशांत कुमार ने बताया कि साइक्रेटिक दवाओं के उत्पादन और बिक्री को लेकर जटिल गाइडलाइन बनी है। फिर भी कई निर्माता कंपनियां और छोटे-छोटे फार्मास्युटिकल कारोबारी नए-नए तरीके से इस कारोबार को चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे नए साइको एक्टिव पदार्थ आ गए हैं जिनकी मात्रा इन दवाओं में बढ़ाकर काफी नशीला बना दिया जा रहा है। इसे पकड़ने के लिए दवाओं में ऐसे पदार्थ की मात्रा की जांच लैब मे ही हो सकती है। इसमें काफी समय लगता है। इसी का फायदा उठाकर यह धंधा फल-फूल रहा है।
एक डोज ही ले सकती है जान
मनोचिकित्सक डॉ आशुतोष का कहना है कि दुनिया के कई देशों में ऐसे मामले सामने आए हैं कि ऐसी दवाओं का सेवन जानलेवा बन गया है। साइको एक्टिव सब्सटेंस की मात्रा अधिक होने की वजह से एक डोज लेने के बाद लोगों की मौत हो गई है। उनका कहना है कि मर्ज और रोगी की स्थित के हिसाब से दवा की डोज निर्धारित होती है। लेकिन नशे के लिए इसका सेवन करने वालों को अंदाजा नही होता कि वो कितनी मात्रा ले रहे हैं। यह उनके लिए घातक साबित हो सकता है।
6 से 10 हजार तक की एक डोज
एनसीबी के विशेषज्ञों के मुताबिक कुछ नशे बेहद मंहगे हैं जो बड़ी-बड़ी पार्टियों में परोसे जा रहे। इनमे एलएसडी और एमडीएमए ज्यादा चलन में है। उन्होंने बताया कि वैक्टिरिया के वजह के बराबर एलएसडी के एक डोज की कीमत 6 से 10 हजार रूपये है। जबकि एमडीएमए 40 से 40 हजार रूपये प्रतिग्राम की रेट से बिक रहा है। इसकी एक डोज 8 से 10 हजार रुपये तक होती है। दोनों ड्रग पाउडर फार्म में होते हैं।
पकड़े गए मादक पदार्थ
मात्रा (किग्रा) कीमत
2020- 17834.79--- 59.42 करेाड़
2021- 33948.153---- 63.84 करोड़
2022- 6024.916--- 194.32 करोड़
2023-1222.736---- 9.67 करोड़
2024- 668.10---- 11 करोड़
(जनवरी से मई)
यह भी पढ़ें:-सीतापुर: बकरी चराने गई 11 वर्षीया बालिका से तीन नाबालिगों ने किया गैंग रेप, पीड़िता अस्पताल में भर्ती