Prayagraj News : महाकुम्भ नगरी बनी ग्रामीण महिलाओं के जीविका का सहारा

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Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज, अमृत विचार। संगम के किनारे सज रही महाकुंभ नगरी जहां एक तरफ करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। वहीं लाखों लोगों के लिए रोजगार का अवसर भी लेकर आया है। आस्था व आध्यात्म के इस महासमागम में लाखों लोगों की जीविका का जरिया भी बन रहा है। महाकुम्भ नगर सीमा में आने वाले ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने अपनी आजीविका चलाने के लिए महाकुंभ को सहारा बना लिया है। महिलाओं ने मिट्टी के चूल्हे और उपलों से अच्छी आमदनी करने की तैयारी बड़े पैमाने पर शुरु कर दी है। मेला शुरु होने के पहले ही गंगा के किनारे महिलाओं ने मिट्टी के चूल्हे और उपलों को बड़ी संख्या में तैयार करना शुरु कर दिया है। यह महाकुम्भ ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार का अवसर बनकर आया है।  

तीर्थराज प्रयाग में संगम किनारे 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 के मध्य आयोजित होने जा रहा महाकुंभ की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। इस महाकुम्भ में डबल इंजन की सरकार जहां सनातन संस्कृति को मजबूत करने का काम कर रही है वहीं लाखों बरोजगारो को रोजगार देने का भी अवसर दे रही है। इस महाकुम्भ में होटल, ट्रैवल और टेंटे, फूड जैसी इंडस्ट्रीज के साथ छोटा कारोबार करने वाले लोगों के लिए भी जीविका का अवसर बनकर आया है। महाकुम्भ नगर नाम से सृजित हुए अस्थाई जिले के अंतर्गत आने वाले 67 गांवों में पशुपालन से जुड़े कार्य में लगे परिवारों की 15 हजार से अधिक महिलाओं के लिए इस महाकुम्भ ने जीविका का जरिया दे दिया है। गंगा व यमुना किनारे बसे कई गाँवों में इन दिनों ईंधन के परम्परागत रूप उपलों का नया बाजार विकसित होने लगा है। इन गांवों में नदी किनारे बड़ी तादाद में  उपलों की मंडी बन गई है। गांवों में इन दिनों गोबर से बने उपलों को बनाने में स्थानीय महिलाएं पूरे दिन जुटी हुई हैं। 

उपलों व चूल्हों के निर्माण का मिल रहा है ऑर्डर
हेतापट्टी गांव की सावित्री का कहना है कि पिछले एक महीने से उनके पास महाकुम्भ में अपने शिविर लगाने वाली संस्थाएं उपले सप्लाई करने के ऑर्डर दे रही हैं । इसी गांव की सीमा सुबह से ही अपने घर की आमतौर पर खाली रहने वाली महिलाओं के साथ मिट्टी के चूल्हे तैयार करने में जुट जाती हैं। सीमा बताती हैं कि महाकुम्भ में कल्पवास करने आने वाले श्रद्धालुओं का खाना इन्ही चूल्हों पर तैयार होता है । इसके लिए अभी तक उनके पास सात हजार मिट्टी के चूल्हे तैयार करने के ऑर्डर मिल चुके हैं। 

शिविरों में हीटर व छोटे एलपीजी सिलेंडर पर रोक
मेला प्रशासन के मुताबिक महाकुम्भ में दस हजार से अधिक संस्थाएं इस बार लगेंगी। इसमें सात लाख से अधिक कल्पवासियों को भी जगह मिलेगी। मेला क्षेत्र में बड़ी संस्थाएं और अखाड़े वैसे तो कुकिंग गैस के बड़े सिलेंडर का इस्तेमाल करती हैं क्योंकि इन्हें प्रतिदिन लाखों लोगों को भोजन कराना होता है। लेकिन, धर्माचार्यों, साधु संतों और कल्पवासी अभी भी अपनी पुरानी व्यवस्था के अंदर ही खाना बनाते हैं।

कुछ स्थानों पर आग लगने की घटनाओं में हीटर और छोटे गैस सिलेंडर का इस्तेमाल बड़ी वजह पाई जाने के मेला प्रशासन ने शिविरों में हीटर और छोटे गैस सिलेंडर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। इस नई व्यवस्था की वजह से भी अब गांव की इन महिलाओं के हाथ से बने उपलों और मिट्टी के चूल्हों की मांग बढ़ गई है। तीर्थ पुरोहित संकटा तिवारी बताते हैं कि तीर्थ पुरोहितों के यहां ही सबसे अधिक कल्पवासी रुकते हैं। ऐसे में, उनकी पहली प्राथमिकता पवित्रता व परम्परा होती है इसके लिए वह मिट्टी के चूल्हों पर उपलों से बना भोजन ही बनाना पसंद करते हैं।

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