Lucknow News: बुजुर्ग के पेट से निकला 8 किलो का ट्यूमर, केजीएमयू के डॉक्टरों ने की सफल सर्जरी

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Mishra
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लखनऊ, अमृत विचार। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के डॉक्टरों ने बुजुर्ग के पेट से आठ किलो का ट्यूमर निकाल कर उसे नया जीवन देने में सफलता हासिल की है। डॉक्टरों का दावा है कि पेट या लिवर आदि में इस तरह के ट्यूमर के पूरी दुनिया में अभी तक सिर्फ 30 मामले ही पंजीकृत हैं। यह जन्मजात समस्याओं की वजह से भी हो सकता है।

 गोंडा निवासी बुजुर्ग का पेट काफी दिन से फूल रहा था। गत दो माह से मरीज के पेट में भीषण दर्द होने लगा। परिवारीजनों ने स्थानीय डॉक्टरों को दिखाया। डॉक्टरों ने गैस व दिल संबंधी समस्या की आशंका जताई। इलाज से राहत नहीं मिली। डॉक्टरों ने पेट में कैंसर होने की आशंका जताते हुए मरीज को केजीएमयू ले जाने की सलाह दी। परिजनों के मुताबिक कैंसर का नाम सुनते ही घबरा गए।  मरीज को लेकर केजीएमयू पहुंचे। यहां गेस्ट्रो सर्जरी विभाग में दिखाने पर डॉक्टरों ने ऑपरेशन की लंबी वेटिंग होने की बात कही। परिजन हतास होकर लौट गए। 

निजी अस्पताल में ऑपरेशन खर्च बताया चार लाख 

केजीएमयू के गेस्ट्रो सर्जरी विभाग में वेटिंग होने पर परिवारीजन मरीज को लेकर निजी अस्पताल गए। यहां डॉक्टरों ने ऑपरेशन पर करीब चार लाख रुपए का खर्च बताया। गरीब परिवारीजनों ने इतनी बड़ी रकम खर्च कर पाने में असमर्थता जाहिर की। इसके बाद परिवारीजनों ने मरीज को केजीएमयू जनरल सर्जरी विभाग में भर्ती कराया। यहां डॉ. सौम्या सिंह के निर्देशन में इलाज शुरू हुआ।

डॉ. सौम्या ने पैथोलॉजी व रेडियोलॉजी समेत दूसरी जांचे कराई। जांच में पता चला कि बुजुर्ग को पेट में दुर्लभ प्रकार का ट्यूमर है। डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी। परिवारीजनों की सहमति के बाद 13 दिसंबर को ऑपरेशन कर ट्यूमर निकाला। इसके बाद मरीज पूरी तरह से सेहतमंद है। केजीएमयू में ऑपरेशन पर करीब 14 हजार रुपए खर्च हुए। 

पेट के दूसरे अंग भी हो रहे थे प्रभावित 

डॉ. सौम्या सिंह ने बताया कि ट्यूमर का आकार लगातार बढ़ रहा था। इसकी वजह से पेट के दूसरे अंगों पर दबाव बढ़ रहा था। आंतें पूरी तरह से दबी हुई थीं। ट्यूमर के कई बार पलटने से आंतों पर दबाव और बढ़ गया था। नतीजतन मरीज के पेट में भीषण दर्द शुरू हुआ। इसमें एक लीटर खून भी भरा हुआ था। मरीज के शरीर में खून की कमी भी हो गई थी। हीमोग्लोबिन छह ग्राम ही बचा था। सर्जरी के दौरान मरीज को कई यूनिट खून चढ़ाना पड़ा था। हालांकि सर्जरी के बाद मरीज को आईसीयू में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ी थी।

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