Kanpur में वरिष्ठ साहित्यकार आनंद शुक्ला बोले- कविता को बंदरिया की तरह नचाते हैं कुमार विश्वास

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Published By Deepak Shukla
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विशेष संवाददाता, अमृत विचार। जलेस (जनवादी लेखक संघ) के बैनर तले कविता पर विचार गोष्ठी में वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.आनंद शुक्ला ने कहा कि कुमार विश्वास पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि कुमार विश्वास तो कविता को बंदरिया की तरह नचाते हैं। उनके जैसे कई कवि हैं। कवि अपनी बेचैनी को चेतना के अनुसार सृजन करता है। पत्रकार पुरम में रोमी का अड्डा में आयोजित जलेस की विचार गोष्ठी में सीमा सिंह का कविता संग्रह कितनी कम जगहें और राजेश अरोड़ा का कविता संग्रह चिट्ठियां पर परिचर्चा आयोजित की गयी थी। संचालन  शालिनी सिंह ने कानपुर के बारे में केदारनाथ अग्रवाल की एक कविता सुनाकर शुरुआत की।  

उन्होंने कहा कि हिंदी भाषी क्षेत्र इतना बड़ा है लेकिन किताबों का कम बिकना चिंताजनक है। खासकर आज के दौर में कविता कम पढ़ी जा रही है। ऐसे में सीमा सिंह की किताब ' कितनी कम जगहे  है ' बहुत संवेदनशील कविताएं प्रस्तुत करती है। इसके बाद राजेश के कविता संग्रह ‘चिट्ठियाँ’ पर जनवादी लेखक संघ के राज्य सचिव नलिन रंजन सिंह ने एक समीक्षक के नजरिए से कहा कि  कविता के संकट से  ज्यादा बड़ा कवियों का संकट है। 

कवि बहुत हैं लेकिन कविता की पहचान कम होती जा रही। उन्होंने कहा की राजेश का कविता संग्रह  चिट्ठियां पढ़कर लगता है कि कवि स्मृतियों में जीता है। कितनी भी विधाएं आ जाएं कविता हमेशा केंद्र में रही है और रहेगी। 

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया 'जिसमें सीमा सिंह, नलिन रंजन सिंह, मौली सेठ, खुशी गुप्ता, शालिनी सिंह, राजेश , पंकज चतुर्वेदी, रमा शंकर सिंह, डॉक्टर संजीव सिकरोरिया, नूर आलम नूर, एस पी सिंह ने अपनी कविताएं पढ़ीं। मौली सेठ ने 'तुम इंतजार करना मेरे जाने का' कविता से एक समा बांध दिया जो अनवरत चलता रहा । रमा शंकर सिंह की कविता 'बांसुरी', और 'जमींदार का रोपनी गीत', ने सबको बहुत भावुक कर दिया । सीमा सिंह ने 'पताकाएं'  शीर्षक से अपनी कविता का पाठ किया। 

"बहुत जागी हुई रातों की कहानी है मेरे पास /नींद दु:स्वप्नों से भरी हुई /जो आधी रात टूटती है एक ही खटके से /मेरी कहानी में किसी को दिलचस्पी नहीं / कि वहाँ नहीं है कोई देवता जिसकी प्रतिष्ठा की जानी है /उस कहानी का कथावाचक मारा जा चुका है /अब आप चाहे तो अपनी धार्मिक पताकाएँ फहरा सकते हैं वहाँ,। पंकज चतुर्वेदी ने  बहुत संवेदनशील गद्य कविताएं सुनाई जिसमें कवि विनोद कुमार शुक्ल को समर्पित कविता सबको बहुत पसंद आई। उन्होंने एक और कविता पोरबन्दर में शीर्षक से सुनाई। किसी से मैंने पूछा: गांधी का घर/कहाँ है?/उसने दुर्लभ /आत्मगौरव से कहा ,कीर्ति मन्दिर वहाँ है/मुझे लगा /गांधी की /मृत्यु नहीं हो सकती/उसकी आँखों में/ऐसी रौशनी थी/जो एक जीवित /व्यक्ति का /पता बताते हुए ही आ सकती है।'' इसके बाद नलिन रंजन सिंह 'आओ प्यार करे' कविता सुनाई। /मैंने युद्ध और शांति में  /शांति को चुना /मैंने मृत्यु और जीवन में  /जीवन को चुना / वे जो भरा-पूरा जीवन जी कर चले गए /उनके शोक में डूबने की जगह /मैंने तुम्हारे साथ /प्रेम में डूबना चुन। संचालन कवयित्री शालिनी सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन अनीता मिश्रा ने ज्ञापित किया।

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