अब मालगाड़ी के लोको पायलट लेंगे एसी का मजा; चार दशक पूर्व कोयला इंजन में गोरे से काले हो जाते थे...
कानपुर, अमृत विचार। चार दशक पूर्व कोयला से रेल इंजन चलते थे, ठंड में तो इंजन में धधकती आग लोको पायलटों के लिए आराम देती थी, लेकिन भीषण गर्मी में धधकती आग जहन्नुम का अहसास कराती थी। अब समय के साथ बहुत कुछ बदलने लगा है। अब कोयला से चलने वाले इंजन लुप्त हो चुके हैं और इलेक्ट्रिक से चलने वाले इंजन आ चुके हैं। अभी तक इन इंजन में एसी नहीं था, लेकिन लोको पायलट की परेशानियों को देखते हुए रेलवे ने इंजनों को एसी करने के साथ ही इंजन में ही प्रसाधन बनाने का काम शुरू कर दिया है।
रेलवे पहले चरण में वीआईपी गाड़ियों के इंजन को एसी बना रहा है और उसके बाद मेल, पैसेंजर गाड़ियों के इंजन को एसी किया जाएगा। इसके बाद मालगाड़ियों के इंजन भी को एसी कर दिया जाएगा। अभी इंजन में लोको पायलट को लू के थपेड़े झेलने पड़ते हैं। भीषण गर्मी में अगर धूप मुंह पर पड़ रही है तो पायलटों को बुरा हाल हो जाता है।
सवारी गाड़ियों के लोको (इंजन) में एसी लगने के बाद मालगाड़ियों के इंजन को भी वातानुकूलित किया जाएगा। यह कार्य शुरू हो चुका है, ताकि लोको पायलट कूल माइंड होकर गाड़ी चला सकें।- अमित मालवीय, वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी, उत्तर मध्य जोन
मालगाड़ी छोड़कर भाग गए थे लोको पायलट
भीषण गर्मी में मालगाड़ी के इंजन इतना गर्म होते हैं कि उसमें बैठना मुश्किल हो जाता है। पहले जब सवारी गाड़ियां निकल जाती थीं, तब मालगाड़ी को हरी झंडी दी जाती थी, जिससे पायलट अपनी निर्धारित ड्यूटी से कई-कई घंटे अधिक ड्यूटी करने को मजबूर होते थे। कल्याणपुर में एक पायलट मालगाड़ी छोड़कर भाग गया था, जिससे तीन से चार घंटे कल्याणपुर में मालगाड़ी खड़ी रही और बाद में दूसरे पायलट ने मालगाड़ी को गंतव्य स्थान तक पहुंचाया था। इसी प्रकार कई पायलट मालगाड़ी छोड़कर भाग चुके हैं।
कानपुर के इंजन को मिला था प्रथम स्थान
रेलवे ने तीन दशक पूर्व गाजियाबाद शेड में इंजनों की प्रदर्शन लगवाई थी, जिसमें देश के सभी मंडल से एक-एक इंजन शामिल हुए थे। इस प्रदर्शनी में कानपुर का भी इंजन पहुंचा था। कानपुर के लोको शेड में इस इंजन को एसी बनाकर भेजा गया था, जिसे रेलवे अधिकारियों ने बहुत सराहा था। कानपुर के इंजन को प्रथम विजेता घोषित करते हुए यहां के वरिष्ठ मंडलीय अभियंता को पुरस्कृत किया गया था।
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