BBAU में गड़बड़ घोटाला... 98 लाख रुपये खर्च, शोध की जानकारी विश्वविद्यालय को ही नहीं
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शबाहत हुसैन विजेता, लखनऊ, अमृत विचार : बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज कुमार अरोड़ा को भारत सरकार ने जिस शोध के लिए 88 लाख रुपये दिये वह शोध जनमानस की भलाई के लिए था लेकिन उस शोध में क्या निकला इसकी जानकारी खुद विश्वविद्यालय के पास ही नहीं है। डॉ. पंकज कुमार अरोड़ा को उद्योगों से निकलने वाले वेस्ट (कचरा) पर शोध का जिम्मा दिया गया था। इस संबंध में जनसम्पर्क अधिकारी डॉ. रचना गंगवार से कई बार फोन पर पक्ष जानने की कोशिश की गई तो फोन नहीं उठाया।
औद्योगिक कारखानों से निकलने वाले वेस्ट भू जल तक आर्सेनिक, क्रोमियम, लेड, यूरेनियम, हैवी मेटल्स पहुंच जाते हैं। यह मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। भारत सरकार ने डॉ. पंकज को इस शोध के जरिये यह जिम्मा सौंपा कि इंडस्ट्रियल वेस्ट (औद्योगिक कचरा) को हैवी मैटीरियल से कैसे अलग किया जाए? औद्योगिक कचरे से खेती योग्य जमीन और और भूजल दूषित हो जाता है। इस शोध के जरिये वह तरीका खोजना था जो मिट्टी और पानी की शुद्धता को दूषित होने से बचा ले। शोध के बाद बाकायदा शोधपत्र प्रकाशित होता और इसे पेटेंट कराया जाता। 98 लाख रुपये के खर्च से कराए गए शोध को पेटेंट होने के बाद भारत सरकार दूसरे देशों के साथ टेक्नालाजी साझा कर सकती है।
शोध के दौरान 5 साल तक शोधकर्ता को प्रतिमाह 85 हजार रुपये का पारिश्रमिक और साढ़े 7 हजार रुपये महीना मकान के किराये के रूप में देना तय किया गया। शोधकर्ता और भारत के राष्ट्रपति के प्रतिनिधि ने अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर किये। इस अनुबंध पत्र में स्पष्ट लिखा गया है कि शोध का कार्य समाप्त हो जाने के बाद शोध में प्रयुक्त उपकरण और अन्य चीजें लौटानी होंगी। इनका किसी दूसरे शोध में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। उपकरण और केमिकल की खरीद के लिए शोधकर्ता को 10 लाख रुपये का भुगतान भी किया गया।
शोधकर्ता को 2018 से 2023 तक शोध पूरा कर जमा करना था। बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ने लिखित बताया कि डॉ. पंकज अरोड़ा 8 जून 2023 को 2 साल के असाधारण अवकाश (बगैर वेतन के अवकाश) पर चले गए। इस दौरान उन्होंने एमजेपी रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय बरेली में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में काम करना बताया है। 7 जून 2025 को उनकी छुट्टी खत्म हो जायेगी, इसके बाद उन्हें वापस इसी विश्वविद्यालय में लौटना होगा।
विवि को नहीं पता शोध का परिणाम
डिपार्टमेंट ऑफ़ बायोटेक्नाेलाॅजी (डीबीटी) भारत सरकार द्वारा शोध के लिए दिये गए धन के सम्बन्ध में सूचना के अधिकार से यह जानकारी मांगी गई कि इस शोध की स्पष्ट प्रमाणिक जानकारी क्या निकलकर आयी? यह भी पूछा गया कि इस शोध से भारतीय उद्योग को क्या लाभ होगा? विश्वविद्यालय से पूछा गया कि जिस शोध के लिए 88 लाख रुपये खर्च किये गए उसके बाद कौन सी टेक्नालाजी विश्वविद्यालय ने पेटेंट कराई? विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलाजी विभाग के अध्यक्ष ने सूचना के अधिकार से मांगी गई जानकारी के जवाब में बताया कि इस सम्बन्ध में आपके द्वारा मांगी गई सूचनाओं का जवाब विभाग के पास उपलब्ध नहीं है।
क्या कहते हैं डॉ. पंकज अरोड़ा
मैं छुट्टी पर गया तो उपकरण और केमिकल लैब में छोड़कर गया। मेरे जाने के बाद लैब से सामान गायब कर दिया गया। मेरे पास नो ड्यूज सार्टिफिकेट है। शोध पूरा होने के बाद वित्तीय एजेंसी को रिपोर्ट भेज दी थी। विश्वविद्यालय छोड़ने से पहले मैं सारी जानकारी देकर आया। जो उपकरण और केमिकल खरीदे गए थे वह माइक्रोबायोलाजी के विभागाध्यक्ष राजेश कुमार के हस्ताक्षर से ही खरीदे गए थे। उन्होंने ही मुझे नो ड्यूज सर्टिफिकेट दिया। डॉ. पंकज ने बताया कि मैं बरेली में स्थायी रूप से एसोसिएट प्रोफ़ेसर हो गया हूं, इसलिए वापस बाबा साहब भीमराव विश्वविद्यालय नहीं लौटूंगा।