प्रयागराज : मस्जिद के बाहर जबरन हनुमान चालीसा पढ़ने वाले आरोपियों को मिली जमानत
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अखिल भारतीय हिंदू सुरक्षा समिति के एक नेता सहित दो लोगों को जमानत देते हुए कहा कि दोषसिद्धि से पहले के चरण में निर्दोषता की धारणा होती है। किसी व्यक्ति को हिरासत में रखने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वह मुकदमे का सामना करने के लिए उपलब्ध रहे और दण्ड के अनुपात में सजा का प्रावधान होना चाहिए।
हिरासत को दंडात्मक या निवारक नहीं माना जाता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति राजवीर सिंह की एकलपीठ ने बीएनएस की धारा 191, 196 और 197 के तहत सचिन सिरोही और संजय समरवाल के खिलाफ दर्ज मामले में जमानत देते हुए पारित किया। मामले के अनुसार इस वर्ष मार्च में आरोपियों ने अपने साथियों के साथ मेरठ की एक मस्जिद के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। धर्म विरोधी नारे लगाए और उसके बाद मस्जिद के पास जबरन हनुमान चालीसा का पाठ किया, जिससे धर्म के आधार पर दुश्मनी और नफरत को बढ़ावा मिला। इसके बाद आरोपियों को हिरासत में ले लिया गया। उन पर मस्जिद को गिराने की धमकी देने का भी आरोप है, जिसके कारण इलाके में अफरा-तफरी मच गई और रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाले लोगों में तनाव पैदा हो गया। मामले में जमानत की मांग करते हुए आरोपियों के अधिवक्ता ने कहा कि आवेदकों के खिलाफ लगाए गए आरोप झूठे हैं और दावा किया कि उन्हें राजनीतिक कारणों से इस मामले में फंसाया गया है। यह भी तर्क दिया गया कि एफआईआर की सामग्री और गवाहों के बयान आवेदकों के खिलाफ कोई विश्वसनीय सबूत नहीं देते हैं।
