प्रयागराज : टूंडला विधानसभा सीट से भाजपा विधायक के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
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प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फिरोजाबाद जिले की टूंडला विधानसभा सीट से भाजपा विधायक प्रेमपाल सिंह धनगर के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 83 की उपधारा (1) (बी) के अनुसार चुनाव याचिका में कथित भ्रष्ट आचरण के पूर्ण विवरण को प्रस्तुत करना चाहिए, जिसमें भ्रष्ट आचरण करने वाले पक्षकारों के नामों का पूर्ण विवरण शामिल हो।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 83(1)(ए) के अनुसार चुनाव याचिका दाखिल करते समय महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा किया जाना चाहिए और उसके बाद कोई संशोधन स्वीकृत नहीं होता है। कोर्ट ने आगे बताया कि आदेश VII नियम 11(ए) स्पष्ट रूप से कार्रवाई के कारण का खुलासा न करने की स्थिति में शिकायत को खारिज करने का प्रावधान करता है। इसी प्रकार एक चुनाव याचिका में अगर याची भौतिक तथ्यों का खुलासा नहीं करता है तो यह निष्कर्ष निकलता है कि कार्यवाही का एक अधूरा कारण स्थापित किया गया है और याचिका खारिज किए जाने योग्य हो जाती है। कोर्ट ने वर्तमान मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए पाया कि याची द्वारा प्रस्तुत संशोधन आवेदन स्वीकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह एक नया मामला प्रस्तुत करता है और भौतिक तत्वों का खुलासा न करने से याचिका में महत्वपूर्ण दोष उत्पन्न होता है, जिससे चुनाव याचिका स्वीकार करने योग्य नहीं रह जाती है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकलपीठ ने प्रेमपाल सिंह की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार टूंडला निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और विपक्षी गड़ेरिया/पाल/बघेल जाति से संबंधित है, इसलिए निर्वाचन क्षेत्र के लिए उसकी उम्मीदवारी शुरू से ही अमान्य थी। बता दें कि उत्तर प्रदेश राज्य में उपरोक्त जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी में श्रेणीबद्ध किया जाता है। चुनाव याचिका लंबित रहने के दौरान याची ने एक संशोधन आवेदन दाखिल किया और महत्वपूर्ण तथ्य जोड़ने की प्रार्थना की। हालांकि उक्त आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि आवेदन में मांगे गए संशोधन के बारे में कोई खुलासा नहीं किया गया। इसके बाद याची ने चुनाव याचिका में महत्वपूर्ण तथ्य जोड़ने के लिए संशोधन हेतु दूसरा संशोधन आवेदन दाखिल किया।
विपक्षी की ओर से दूसरे आवेदन का इस आधार पर विरोध किया गया कि इससे चुनाव याचिका की प्रकृति ही बदल जाएगी, साथ ही विपक्षी द्वारा भी एक आवेदन दाखिल किया गया, जिसमें तर्क दिया गया कि विपक्षी के खिलाफ कार्यवाही का कोई कारण नहीं बताया गया है और संशोधन आवेदन में अधूरे तथ्य बताए गए हैं। हालांकि याची के अधिवक्ता ने विपक्षी के स्तर का खंडन करते हुए कोर्ट को बताया कि प्रस्तावित संशोधन के तहत कोई नया तथ्य नहीं जोड़ा जा रहा है, लेकिन कोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि आदेश VI के नियम 2 के अनुसार भौतिक तथ्यों का खुलासा करना आवश्यक होता है। ऐसा न करने की स्थिति में चुनाव याचिका स्वीकार्य नहीं होती है।
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