कोर्ट का उदार और सहनशील रवैया राष्ट्र विरोधी तत्वों को दे रहा बढ़ावा: हाईकोर्ट

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Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फेसबुक पर एक आपत्तिजनक पोस्ट साझा करने वाले 62 वर्षीय आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि आरोपी का कृत्य संविधान और उसके आदर्शों के प्रति अपमानजनक है तथा भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की भावना को चुनौती देने वाला है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 51ए(ए) के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान का पालन करें और उसके आदर्श एवं प्रतीकों जैसे राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करें तथा उपखंड(सी) के अनुसार भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखने का प्रयास करें, जबकि वर्तमान मामले में आरोपी ने फेसबुक पर एक पोस्ट साझा कर जिहाद का प्रचार करने, पाकिस्तान जिंदाबाद कहने और अपने समर्थकों से पाकिस्तानी जिहादियों का समर्थन करने की अपील की। सीधे तौर पर यह आपत्तिजनक पोस्ट राष्ट्रीय भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने अंसार अहमद सिद्दीकी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए की। याचिका के अनुसार याची के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धाराओं के तहत पुलिस स्टेशन छतरी जिला बुलंदशहर में मुकदमा पंजीकृत किया गया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याची एक वरिष्ठ नागरिक है और उसकी उम्र से पता चलता है कि वह स्वतंत्र भारत में पैदा हुआ है। उसका गैर-जिम्मेदाराना तथा राष्ट्र-विरोधी आचरण उसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा मांगने का अधिकार नहीं देता है। हालांकि याची के अधिवक्ता ने आरोपी की उम्र का हवाला देते हुए कोर्ट को बताया कि उसका इलाज चल रहा है। हालांकि दूसरी ओर सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद विवादित पोस्ट साझा की गई है, जिससे यह पता चलता है कि याची धार्मिक और भावनात्मक आधार पर भी आतंकवादियों के कृत्यों का समर्थन करता है। उसका आचरण राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है। कोर्ट ने स्वीकार किया कि राष्ट्र विरोधी मानसिकता वाले लोगों के प्रति अदालत का उदार और सहनशील रवैया उन्हें और अधिक राष्ट्रविरोधी बना देता है। अंत में कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट को मुकदमे के शीघ्र निस्तारण का निर्देश दिया।

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