Bareilly: मुर्गियों की आंत में संक्रमण को रोकेगा कैरी का ''''कॉक्सीक्लीन''''
बरेली, अमृत विचार। हर साल हजारों मुर्गियों की मौत का कारण बनने वाली “कॉक्सीडियोसिस” बीमारी की रोकथाम के लिए केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने साल भर के अध्ययन के बाद ऐसा उत्पाद तैयार किया है, जिसके प्रयोग से न सिर्फ मुर्गियों को इस जानलेवा बीमारी से बचाव मिलेगा बल्कि बीमार मुर्गियों से किसानों को होने वाले आर्थिक संकट से भी निजात मिलेगी।
कॉक्सीडियोसिस रोग कोक्सीडिया नामक प्रोटोजोआ के कारण होता है, जो आंतों की कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं। ये दस्त, वजन घटना, और उत्पादन में कमी का कारण बनता है। ये मुर्गियों की लगभग हर प्रजाति को प्रभावित करता है। बताया जा रहा है कि स्वदेशी स्तर पर कॉक्सीडियोसिस बीमारी के लिए ये उत्पाद देश में पहला आर्गेनिक उत्पाद है।
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. गौतम कुल्लूरू के अनुसार इस रोग की बीमारी के लिए बाजार में कॉक्सीडियोस्टेट नामक दवाई मौजूद है, लेकिन इसमें केमिकल मौजूद होने के चलते ये कई बार प्रभावी नहीं हो पाता है। इसके विकल्प के रूप मे आर्गेनिक प्रॉपर्टीज वाले “कॉक्सीक्लीन” नामक उत्पाद को तैयार किया गया है। उन्होंने इस बीमारी के लिए मुर्गी की ब्रायलर प्रजाति पर अध्ययन किया। ब्रायलर प्रजाति की मुर्गियों का इस्तेमाल पालक मांस बिक्री के लिए करते हैं। अगस्त 2024 में अध्ययन शुरू करने के दौरान उन्होंने कॉक्सीक्लीन में आर्गेनिक फार्मेशन को इस्तेमाल कर मुर्गियों को तीन वर्गों में विभाजित किया।
इनमें पहले वर्ग वाली मुर्गियों को साधारण दाना, द्वितीय ग्रुप वाली मुर्गियों को बाजार में मिलने वाला कोक्सीडियोस्टेट के साथ मिलाकर दाना और तृतीय वर्ग वाली मुर्गियों को कॉक्सीक्लीन युक्त दाना देकर परिणामों का विश्लेषण किया। तीनों वर्गों में कॉक्सीक्लीन वाले वर्ग की मुर्गियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता, तनाव स्तर, पाचन तंत्र की सेहत, शारीरिक वजन में बढ़ोतरी बाकी दोनों वर्गों की तुलना में अधिक प्रभावी मिला। इन परिणामों के आधार पर ये निष्कर्ष निकला की मुर्गियों को दाने के साथ कॉक्सीक्लीन मिलाकर देने से कॉक्सीडियोसिस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है। अध्ययन में नेतृत्वकर्ता डॉ. गौतम के साथ प्रधान वैज्ञानिक डॉ जगबीर त्यागी और पीएचडी शोधार्थी राम कुमार का सहयोग रहा।
क्लिनिकल और नॉन क्लिनिकल हैं कॉक्सीडियोसिस के लक्षण
डॉ गौतम बताते हैं की कॉक्सीडियोसिस दो तरीके - क्लिनिकल और नॉन क्लिनिकल के लक्षणों से पहचाना जाता है। इसमें क्लिनिकल में मुर्गियों की बीट का रंग लाल, चॉकलेटी या भूरा होता है, जो मुर्गियों के मल में खून के रिसाव से होता है। वही, नॉन क्लिनिकल में मुर्गियों को दिए जाने वाले दाने के अनुरूप वजन नहीं बढ़ने, कोई लक्षण नहीं दिखने और प्रतिरोधक क्षमता कम होने से जल्दी संक्रमण फैलने से पहचाना जाता है।
छह गुना तक कम होगी लागत, किसानों को मिलेगा आर्थिक फायदा
डॉ गौतम के अनुसार अभी कॉक्सीडियोसिस की रोकथाम के लिए आने वाली दवाइयों की कीमत अधिक होने से किसानों की आय अधिक लगती है, लेकिन संस्थान द्वारा बनाये गए कॉक्सीक्लीन को दाने में मिलाकर देने से उनकी लागत में करीब छह गुना तक गिरावट आ सकती है। इसको पानी और दाने दोनों में मिलाकर दिया जा सकता है।
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार तिवारी ने बताया कि केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान किसानों की कम लागत में दुगनी आय के संकल्प पर कार्यरत है। डॉ गौतम और उनकी टीम द्वारा बनाया गया कॉक्सीक्लीन इसी लक्ष्य को पूरा करता है। ये मुर्गियों को बचाने के साथ-साथ किसानों को भी आर्थिक क्षति से बचायेगा।
