कांवड़ रूट के ढाबा मालिकों को बतानी होगी पहचान, SC ने QR कोड मामले में यूपी सरकार के आदेश पर नहीं लगाई रोक

Amrit Vichar Network
Published By Muskan Dixit
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नई दिल्लीः न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि चूंकि मंगलवार को कांवड़ यात्रा का अंतिम दिन है, इसलिए वे होटल मालिकों के नाम और क्यूआर कोड प्रदर्शित करने के मुद्दे पर विचार नहीं करेंगे। पीठ ने कहा, "हमें बताया गया है कि आज यात्रा का अंतिम दिन है। इसलिए, हम केवल यह आदेश देते हैं कि सभी होटल मालिक वैधानिक आवश्यकताओं के अनुसार लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करें।"

यह फैसला शिक्षाविद अपूर्वानंद झा और अन्य की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक एम. सिंघवी ने तर्क दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार को क्यूआर कोड संबंधी निर्देश जारी करने से पहले सुप्रीम कोर्ट के 2024 के आदेश में संशोधन के लिए अनुरोध करना चाहिए था। उन्होंने कहा, "यह यात्रा के दौरान लोगों को बहिष्कृत करने की सबसे विभाजनकारी नीति है, जैसे कि वे अछूत हों। क्या मेनू कार्ड के बजाय मेरा उपनाम यह सुनिश्चित करेगा कि कांवड़ियों को अच्छा भोजन मिले?" उन्होंने कांवड़ियों द्वारा कुछ दुकानों पर कथित हमलों का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसी नीतियां सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देती हैं।

न्यायमूर्ति सुंदरेश ने जवाब में कहा कि लोगों की खान-पान की प्राथमिकताएं अलग-अलग होती हैं। धार्मिक यात्रा के दौरान कोई शाकाहारी व्यक्ति केवल शाकाहारी भोजन परोसने वाली जगह पर जाना पसंद करेगा। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह निर्देश भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के नियमों के अनुरूप हैं। उन्होंने कहा, "इस देश में कुछ लोग ऐसे हैं जो मांस पकाने वाले घर में भी खाना नहीं खाते। भक्तों की भावनाएं होती हैं और नियमों के तहत फोटो पहचान पत्र जरूरी है। नाम दिखाने में डर क्यों?"

वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि स्थानीय नियमों के अनुसार, कांवड़ यात्रा के दौरान मार्ग पर स्थित भोजनालयों में केवल शाकाहारी भोजन बेचा जाता है। न्यायमूर्ति सुंदरेश ने कहा कि अगर कोई होटल शुरू से शाकाहारी भोजन परोस रहा है, तो नाम प्रदर्शित करने की जरूरत नहीं, लेकिन अगर कोई होटल यात्रा के लिए मांसाहारी भोजन बंद कर शाकाहारी भोजन शुरू करता है, तो उपभोक्ता को यह जानने का अधिकार है। उन्होंने कहा, "उपभोक्ता को यह लचीलापन मिलना चाहिए। अगर कोई होटल पहले मांसाहारी भोजन परोसता था और यात्रा के दौरान शाकाहारी भोजन शुरू करता है, तो उपभोक्ता को इसका पता होना चाहिए। उपभोक्ता ही राजा है।"

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों के इसी तरह के निर्देशों पर रोक लगाई थी, जिसमें भोजनालयों को मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने को कहा गया था। याचिकाकर्ता अपूर्वानंद झा ने उत्तर प्रदेश प्रशासन की 25 जून की प्रेस विज्ञप्ति का हवाला देते हुए कहा कि कांवड़ मार्ग पर भोजनालयों के लिए क्यूआर कोड अनिवार्य करने का निर्देश भेदभावपूर्ण है और इससे पहले कोर्ट इस पर रोक लगा चुका है। याचिका में आरोप लगाया गया कि यह निर्देश दुकान, ढाबा और रेस्तरां मालिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

बता दें कि हिंदू कैलेंडर के श्रावण माह में भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए लाखों श्रद्धालु गंगाजल लेकर कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं। इस दौरान कई श्रद्धालु मांसाहार, प्याज और लहसुन युक्त भोजन से परहेज करते हैं।

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